अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर सुर्खियों में हैं — इस बार अपने मिडिल ईस्ट दौरे को लेकर। अपने दूसरे कार्यकाल की पहली विदेश यात्रा के तहत ट्रंप 13 मई को सऊदी अरब पहुंचे और 141 अरब डॉलर की डिफेंस डील पर हस्ताक्षर किए। व्हाइट हाउस ने इसे अमेरिका के इतिहास की सबसे बड़ी डिफेंस डील बताया है।
ट्रंप और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के रिश्ते पहले कार्यकाल से ही काफी मधुर रहे हैं। यही वजह है कि शपथ ग्रहण के बाद ट्रंप का पहला फोन क्राउन प्रिंस को ही गया और अब दौरे में उनका गर्मजोशी से स्वागत भी किया गया।
सवाल यह है कि एक कट्टर मुस्लिम देश सऊदी अरब और अमेरिका जैसे पूंजीवादी देश के रिश्ते इतने गहरे क्यों हैं? दरअसल यह रिश्ता धर्म पर नहीं, रणनीतिक, व्यापारिक और सुरक्षा हितों पर आधारित है। अमेरिका को ऊर्जा यानी तेल की जरूरत है और सऊदी अरब को हथियारों और तकनीक की।
इतिहास में झांकें तो दोनों देशों की यह साझेदारी 1930 के दशक में शुरू हुई, जब अमेरिका ने सऊदी तेल क्षेत्रों में निवेश किया। 1945 में तत्कालीन राष्ट्रपति रूजवेल्ट और सऊदी किंग अब्दुल अज़ीज़ की मुलाकात ने रिश्तों को ‘तेल के बदले सुरक्षा’ के फॉर्मूले पर आगे बढ़ाया।
ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी 110 अरब डॉलर की हथियार डील हुई थी। अब दोबारा राष्ट्रपति बनने पर ट्रंप ने न केवल नई डील की, बल्कि क्राउन प्रिंस को 600 अरब डॉलर के निवेश को एक ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का प्रस्ताव भी दिया।
नई डील के तहत अमेरिका सऊदी को वायु रक्षा, मिसाइल तकनीक, नौसैनिक सुरक्षा, बॉर्डर सिक्योरिटी, साइबर सिस्टम और अंतरिक्ष निगरानी जैसी अत्याधुनिक क्षमताएं देगा। इस डील से दोनों देशों की सैन्य साझेदारी और मजबूत होगी।
डेमोक्रेट राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में ये रिश्ते ठंडे पड़ गए थे। 2018 में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या और यमन युद्ध में अमेरिकी हथियारों की भूमिका पर बाइडेन ने कड़ी आलोचना की थी। नतीजा – हथियार डील पर रोक और संबंधों में दरार।
लेकिन जैसे ही रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ और अमेरिका को ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ा, समीकरण बदल गए। 2022 में बाइडेन को मजबूरी में सऊदी यात्रा करनी पड़ी। लेकिन ट्रंप की तुलना में रिश्तों में पहले जैसी गर्मजोशी नजर नहीं आई।
2023 में जब सऊदी अरब चीन के साथ नजदीकियों में आया और ईरान से अपने संबंध सुधारने लगा, तो अमेरिका के लिए यह खतरे की घंटी बन गया। चीन की इस भूमिका ने अमेरिका को नए सिरे से सऊदी अरब के करीब आने के लिए मजबूर कर दिया।
फोरम फॉर ग्लोबल स्टडीज के डॉ संदीप त्रिपाठी कहते हैं कि ट्रंप के पास क्राउन प्रिंस के साथ मजबूत व्यक्तिगत तालमेल है। सऊदी को हथियार चाहिए, अमेरिका को तेल और निवेश — यह लेन-देन का रिश्ता है जिसमें दोनों अपने-अपने हित साध रहे हैं।
ट्रंप की यह यात्रा इसलिए भी अहम है क्योंकि वे इस बार इजरायल नहीं गए, जबकि वे कतर और यूएई का दौरा करेंगे। माना जा रहा है कि ट्रंप इजरायल पर दबाव बनाकर गाजा युद्ध को समाप्त कराने की कूटनीति में लगे हैं।
अमेरिका और सऊदी अरब का यह रिश्ता किसी वैचारिक मेल पर नहीं, बल्कि रणनीतिक, आर्थिक और सामरिक जरूरतों पर टिका है। ट्रंप की व्यापारिक सोच और सऊदी अरब की ‘विजन 2030’ योजना ने इस दोस्ती को और मजबूती दी है। मिडिल ईस्ट में अमेरिका अपनी बादशाहत बनाए रखना चाहता है, और सऊदी अरब वैश्विक ताकत बनना चाहता है — यही गठजोड़ इस साझेदारी की असली कहानी है।
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