Pithoragarh : उत्तराखंड में जंगलों की आग एक विकराल समस्या बनती जा रही है। गर्मी के बढ़ते ही जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं, जिससे वन संपदा को भारी नुकसान हो रहा है।
तमाम पेड़-पौधे और जीव-जंतु इस आग में झुलस कर विलुप्त होने के कगार पर भी पहुंच गए हैं. गर्मी जैसे-जैसे बढ़ रही है वैसे ही पिथौरागढ़ के आसपास के जंगलो में आग लगने का सिलसिला भी बढ़ता जा रहा है. जंगलों की आग से निपटना वन विभाग के सामने एक मुश्किल चुनौती है. समय रहते आग पर काबू न पाने की स्थिति में तस्वीरें काफी भयावह होती जा रही हैं और चारो तरफ दिखती है तो सिर्फ तबाही.
उत्तराखंड में जंगलो की आग एक गंभीर समस्या है. गर्मियां बढ़ने के साथ ही जंगलो में आग लगने का खतरा भी बढ़ते जा रहा है, जिससे बेशकीमती वन संपदा जलकर खाक होते जा रही है. बात अगर पिथौरागढ़ जिले की करें तो साल की शुरुआत से ही अभी तक 30 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जल चुके हैं. जिससे लाखों की संपति का नुकसान हो चुका है और आग लगने का सिलसिला जारी है.
जानवर कर रहे आबादी की तरफ रुख
जंगलो को आग से बचाने के लिए वन विभाग अपने स्तर से हर संभव तरीके तो अपना रहा है, लेकिन सीमित संसाधन होने के कारण वह भी मजबूर ही है. आग के कारण जंगलो से जानवर दूसरे इलाके की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे जानवर और मानव के बीच संघर्ष की आशंका भी बढ़ी है और तमाम जीव-जंतुओ के अस्तित्व पर खतरा भी मंडरा रहा है, जो पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या है. पिथौरागढ़ के रहने वाले प्रकृति प्रेमी मनीष ने इसे भविष्य के लिए गंभीर समस्या बताते हुए कहा कि वन विभाग को अपने संसाधन और मैन पॉवर बढ़ाने की जरूरत है.
जंगलों की आग से पर्यावरण को नुकसान तो होता ही है साथ ही यह इंसानों की सेहत के लिए भी हानिकारक है. जंगलों में लगी आग से निकलने वाले धुएं से कई प्रकार की बीमारियां भी जन्म लेती हैं. पिथौरागढ़ जिला अस्पताल के मुख्य फिजिशियन डॉ. डी एस धर्मसत्तू ने जानकारी देते हुए बताया कि इस आग से दमा की बीमारी हो सकती है और सांस के रोगियों के लिए यह हवा घातक हो सकती है. पहाड़ की भौगोलिक स्थिति और संसाधनों के अभाव के कारण जंगलो में लगी आग को रोक पाना नामुमकिन ही नजर आता है,लेकिन इससे होने वाले नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है.
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