महाकुंभ 2025 का आयोजन चल रहा है और इस विशाल आयोजन में हर साल की तरह इस बार भी लाखों साधु-संतों, साधकों, भक्तों और श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी है। इनमें से सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाले होते हैं – अघोरी साधु। इनके रहस्यमयी जीवन और साधना पद्धति ने हमेशा से ही लोगों को उत्सुक किया है। भस्म से सजे हुए, खप्पर लिए, काले कपड़े पहनने वाले और रहस्यमयी जीवन जीने वाले अघोरी साधुओं के बारे में कई सवाल हैं।
अघोर शब्द का अर्थ है ‘सरल’ और ‘सहज’। यह पंथ भगवान शिव से जुड़ा हुआ है और इसकी साधना जीवन और मृत्यु के भेद को समाप्त करने पर आधारित है। अघोरी मानते हैं कि जीवन और मृत्यु के बीच कोई अंतर नहीं है। शरीर चाहे जीवित हो या मृत, वह केवल पंचतत्वों का मिश्रण है। उनकी साधना का मुख्य उद्देश्य है सांसारिक मोह, भय और घृणा से मुक्ति।
महाकुंभ के सेक्टर 19 में अघोरी शिविर स्थापित किया गया है। शिविर के बाहर ‘अलख निरंजन’ का बड़ा काला झंडा लहराता है। यहां साधुओं का जीवन बाकी साधु समाज से अलग दिखता है। वे अपने शरीर पर भस्म (राख) लगाते हैं, रुद्राक्ष की माला पहनते हैं और श्मशान साधना करते हैं। उनके पास खप्पर (मानव खोपड़ी) होती है, जिसे वे प्रसाद ग्रहण करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
अघोरी साधुओं का जीवन समाज की परंपरागत धारणाओं से पूरी तरह अलग होता है। वे सांसारिक बंधनों से मुक्त रहते हैं और शिव की भक्ति में लीन रहते हैं। अघोरियों के अनुसार, शिव के मार्ग पर चलने के लिए भौतिक चीजों का त्याग करना पड़ता है।
अघोर साधना मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है:
अघोर पंथ के बारे में समाज में कई भ्रांतियां प्रचलित हैं। लोग मानते हैं कि अघोरी नरबलि देते हैं या शव का मांस खाते हैं। लेकिन अघोरी साधु कहते हैं कि यह तांत्रिक प्रक्रियाओं का हिस्सा हो सकता है, जो केवल सांसारिक मोह को समाप्त करने के लिए होती हैं।
अघोरी बनने के लिए साधक को पहले अपने गुरु की तलाश करनी होती है। गुरु की अनुमति मिलने के बाद साधक को दीक्षा दी जाती है। यह दीक्षा तीन चरणों में होती है:
अघोर पंथ शिव के दर्शन पर आधारित है। अघोरी मानते हैं कि सभी चीजें शिव का रूप हैं – चाहे वह शुभ हो या अशुभ। उनके अनुसार, मानव शरीर केवल पंचतत्वों का मिश्रण है और आत्मा अजर-अमर है। वे अपने साधनों के माध्यम से यह सिद्ध करना चाहते हैं कि मृत्यु और जीवन के बीच कोई भेद नहीं है।
अघोरी समाज की सामान्य धारणाओं और परंपराओं से अलग होते हैं। वे किसी जाति, धर्म या वर्ग में बंधे नहीं होते। उनके अनुसार, अघोरी का मतलब है – सभी भेदभावों से मुक्त और समानता का प्रतीक।
अघोरी साधु अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं, जो मृत्यु और शुद्धता का प्रतीक है। उनका मानना है कि भस्म शिव का प्रसाद है। खप्पर का उपयोग वे प्रसाद ग्रहण करने के लिए करते हैं। हालांकि, हर अघोरी के पास खप्पर नहीं होता। खप्पर केवल श्मशान से प्राप्त किया जाता है।
अघोरी साधु मानते हैं कि उनकी साधना को आम लोग नहीं समझ सकते। उनकी साधनाओं का मुख्य उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करना और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना है।
कुछ लोग मानते हैं कि अघोरी नरबलि देते हैं। हालांकि, अघोरी साधु इस बात से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि बलि केवल प्रतीकात्मक होती है, जिसमें एक बूंद खून चढ़ाना ही पर्याप्त है।
महाकुंभ में अघोरियों की उपस्थिति समाज में उनके महत्व और उनकी साधनाओं के प्रति सम्मान को दर्शाती है। वे शिव के उपासक हैं और उनके जीवन का उद्देश्य केवल आत्मा को शुद्ध करना है।
अघोरी साधुओं का जीवन और साधना रहस्यमयी जरूर है, लेकिन उनके दर्शन और साधना का उद्देश्य मानवता को बेहतर बनाना है। उनका संदेश है कि मृत्यु और जीवन केवल भ्रम हैं।
महाकुंभ 2025 में अघोरियों की उपस्थिति हमें यह समझने का मौका देती है कि उनके दर्शन और साधना में गहराई है, जिसे समझने के लिए धैर्य और समर्पण की जरूरत है।
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