हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में हुए हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस घटना ने जहां एक ओर देशवासियों के दिलों में दुख और गुस्सा भरा, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। मोहन भागवत ने साफ शब्दों में कहा कि भारत अहिंसा का मार्ग अपनाता है, लेकिन अगर कोई बुराई पर उतर आए, तो उसे सबक सिखाना भी हमारा धर्म बन जाता है।
पहलगाम हमले के बाद मोहन भागवत ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में संबोधित करते हुए कहा कि अहिंसा भारतीयों का मूल स्वभाव है। भारत ने हमेशा से प्रेम, करुणा और सहिष्णुता का संदेश दिया है। लेकिन कुछ तत्व ऐसे हैं जो किसी भी हाल में सुधरने को तैयार नहीं होते। ऐसे में देश की रक्षा और समाज की सुरक्षा के लिए कठोर कदम उठाना भी आवश्यक हो जाता है।
भागवत ने कहा, “हम अपने पड़ोसियों का कभी अपमान नहीं करते। हम किसी का नुकसान नहीं करते। लेकिन अगर कोई अपनी बुरी नीयत से हमें नुकसान पहुंचाने निकले, तो फिर हमारे पास उसे सबक सिखाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। राजा का कर्तव्य है कि वह अपनी प्रजा की रक्षा करे।”
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में पहलगाम हमले को धर्म और अधर्म के बीच की लड़ाई करार दिया। उन्होंने कहा कि यह संघर्ष केवल भौतिक नहीं है, बल्कि यह नैतिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी लड़ा जा रहा है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “रावण को भी पहले कई मौके दिए गए थे कि वह सुधर जाए। लेकिन जब वह नहीं माना, तब भगवान श्रीराम ने उसका अंत किया। इसी तरह, अगर कुछ लोग दुनिया में आतंक और हिंसा फैलाते हैं, तो उनके खिलाफ सख्त कदम उठाना समय की मांग बन जाता है।”
भागवत ने यह भी जोड़ा कि हिंदू कभी किसी से उसका धर्म पूछकर उसे नहीं मारते। हिंदू धर्म में हर प्राणी के प्रति दया, प्रेम और करुणा का भाव है। लेकिन अधर्म को समाप्त करने के लिए शक्ति का प्रयोग करना भी धर्म का हिस्सा है।
अपने भाषण में मोहन भागवत ने समाज की एकता पर भी विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि जब समाज संगठित होता है, तो कोई भी दुश्मन उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता।
भागवत ने कहा, “अगर कोई हमें बुरी नजर से देखेगा, तो उसकी आंख निकाल दी जाएगी। हम हिंसा में विश्वास नहीं करते, लेकिन चुपचाप सहना भी उचित नहीं। एक सच्चा अहिंसक वही होता है, जिसके पास ताकत हो और जो आवश्यकता पड़ने पर उसका प्रयोग कर सके।”
पहलगाम हमला एक बार फिर इस सच्चाई को उजागर करता है कि आतंकवाद के खिलाफ सख्त और निर्णायक नीति की आवश्यकता है। भारत ने हमेशा आतंकवाद का डटकर मुकाबला किया है, लेकिन समय-समय पर कुछ घटनाएं यह याद दिलाती हैं कि सजग रहना कितना जरूरी है। मोहन भागवत का यह बयान भी इसी दिशा में एक चेतावनी है कि देश को अपनी रक्षा के लिए मजबूत और तैयार रहना होगा।
भारत ने हमेशा शांति की पहल की है, चाहे वह पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों की बात हो या आंतरिक स्तर पर समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सौहार्द्र बढ़ाने की कोशिशें। लेकिन जब ऐसी अमानवीय घटनाएं होती हैं, तब देश को अपनी सुरक्षा प्राथमिकता बनानी पड़ती है।
मोहन भागवत ने यह स्पष्ट किया कि सुरक्षा के लिए जब आवश्यकता हो, तो बल प्रयोग करना भी नैतिक और आवश्यक बन जाता है। यह विचारधारा केवल रक्षात्मक नहीं, बल्कि न्यायपूर्ण भी है, जो धर्म और कर्तव्य दोनों की रक्षा करती है।
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