भक्ति

एक श्राप ने किया रावण का अंत

A curse killed Ravana

एक श्राप ने किया रावण का अंत

असुरों के राजा लंकापति रावण कोई आम व्यक्ति नहीं थे। उन्होंने भगवान शिव की सालों से तपस्या कर ऐसा ज्ञान हासिल किया था जो आज तक भी किसी भी विद्वान के पास नहीं है। और रावण ना केवल विद्वान था बल्कि महाशक्तिशाली भी थे। इतना विद्वान और शक्तिशाली होने के बावजूद भी उनका अंत हुआ क्योंकि रावण का अहंकार और अधर्म उन्हें विनाश की ओर ले गया

अक्सर हमने देखा है कि जीवन में अंहकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन होता है और ऐसा ही उनके साथ भी हुआ। उनके अहंकार के कारण ही उनके जीवन में उन्हें कई श्रापों का सामना करना पड़ा और उन्हीं श्रापों में से एक  श्राप का संबंध माता-सीता को अशोक वाटिका में रखने से है। आखिर क्यों माता सीता के साथ रावण ने जबरदस्ती नहीं की ? उन्हें अशोक वाटिका में क्यों रखा गया ? क्यों रावण ने माता सीता को छूआ तक नहीं?

इन्हीं प्रश्नों के जवाब के लिए हम लेकर आ गए है आप सभी के लिए ये आर्टिकल, जिसमें हम आपको रावण और माता सीता से जुड़े हर राज आपको बताने वाले है

जैसा कि विदित है कि असुरों के राजा रावण को अपने अहंकार के कारण अनेकों श्रापों को अपने ऊपर लेना पड़ा था। और इतना ही नहीं माता सीता को ना छूने के पीछे भी श्राप ही एकमात्र वजह था। पुराणों के अनुसार, रावण ने एक बार बलपूर्वक अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए एक अप्सरा को हद से ज्यादा परेशान किया और उस अप्सरा का नाम था पुंजिकस्थली। रावण ने जबरदस्ती उसका अपहरण कर लिया और उसके साथ दुर्व्यवहार करने का प्रयास किया।

अप्सरा ने अपनी रक्षा के लिए अपने तप और पुण्य का सहारा लिया और रावण को श्राप दे दिया। अप्सरा ने श्राप दिया कि यदि रावण किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध स्पर्श करेगा, तो उसका शीश सौ टुकड़ों में विभाजित हो जाएगा। इस श्राप से भयभीत रावण ने कभी किसी स्त्री को बलपूर्वक स्पर्श करने की हिम्मत नहीं की।

और वही जब रावण ने माता सीता का अपहरण किया, तो वो खुद माता सीता को अपने महल में रखना चाहता था। लेकिन पुंजिकस्थली द्वारा दिए गए श्राप को याद कर रावण ने ऐसा नहीं किया। और केवल श्राप के कारण रावण ने माता सीता को अशोक वाटिका में रखा।

इसके साथ-साथ रावण को यह भी ज्ञात था कि माता सीता, भगवान श्रीराम की पत्नी हैं और उन्हें स्पर्श करना उसके लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो सकता है। इस कारण, उसने माता सीता को लंका में अशोक वाटिका में रखा, जो एक सुंदर और शांत स्थान था। अब बारी आती है प्रयासों की, तो रावण ने माता सीता अनेकों लालच दिए।

अशोक वाटिका में, रावण ने सीता को मनाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन माता सीता ने अपने पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए उसके सभी प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया। और तभी से अशोक वाटिका रावण के अहंकार और सीता के साहस का प्रतीक बन गई।

आपको बता दें कि ये श्राप रावण के अधर्म का परिणाम था और उसके जीवन में विनाशकारी साबित हुआ। और इसका परिणाम भी हम सभी के सामने है। रावण को उसके ही अपने भाई विभीषण द्वारा भी बार बार समझाया गया लेकिन रावण ने किसी की भी एक ना सुनी। वो कहते है ना

“विनाश काले विपरीत बुद्धि”, कुछ ऐसा ही विद्वानों में श्रेष्ठ रावण के साथ हुआ, जिसकी वजह से आज तक भी रावण के पुतले को जलाया जाता है। ताकि आज के समय में भी लोग इस चीज से शिक्षा लें और अपने अहंकार को त्यागें।

 

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Anshul Bhardwaj

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