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भगवान विष्णु को इन कारणों की वजह से कहां जाता हैं नारायण। जान लें ‘नारायण’ का अर्थ

भगवान विष्णु को इन कारणों की वजह से कहां जाता हैं नारायण। जान लें ‘नारायण’ का अर्थ

त्रिदेवों में से एक देव भगवान विष्णु जिनके इस धरती पर अनेकों अवतार हुए। कभी उन्होंने श्रीराम बनकर बुराइयों का खात्मा किया तो कभी श्रीकृष्ण बनकर पापों से सभी का उद्धार किया। भगवान विष्णु ही एकमात्र ऐसे भगवान है जो भगवान शिव का गुस्सा शांत कर सकते थे। भगवान विष्णु को लेकर बहुत सारी पौराणिक कथाएं प्रचलित है। और उन सभी कथाओं के बारे में आपको बताने का बीड़ा हमने उठा लिया है।

तो आज के इस आर्टिकल में हम बात करने वाले है कि भगवान विष्णु को नारायण नाम से क्यों जाना जाता है। देखिए भगवान विष्णु को वैसे तो अनेकों नामों से जाना जाता है। लेकिन भगवान विष्णु का नारायण नाम सबसे ज्यादा लोगों को मालूम है। और आज हम आपको इसी के बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले है।

विष्णु भगवान को क्यों कहा जाता है “नारायण” ?
विष्णु भगवान को नारायण कहने के पीछे एक सुंदर और गहरी पौराणिक कथा है। आपको बता दें कि “नारायण” शब्द संस्कृत से लिया गया है। जिसमें “नार” का अर्थ जल और “अयन” का अर्थ निवास होता है। अर्थात नारायण वह हैं जो जल में निवास करते हैं। और इस बात को तो आप भी नहीं नाकार सकते कि भगवान विष्णु जल में रहते है।

अक्सर हमने भगवान विष्णु की जितनी भी प्रतिमाएं देखी है उसमें वो शेषनाग पर सुप्त अवस्था में जल में ही दिखाए जाते है।

विष्णु भगवान को क्यों कहा जाता है “नारायण” ?
प्राचीन कथा के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में केवल एक ही सत्य था—वो था “परब्रह्म”। और जब सृष्टि का अंत होता है, तब चारों ओर केवल जल ही जल होता है। और उसी जल में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा में विश्राम करते हैं। इसी कारण उन्हें नारायण कहा जाता है, क्योंकि वे उस जल में निवास करते हैं।

अब बात करते है भगवान विष्णु के अवतारों की। यहां हम केवल उन अवतारों की बात करेंगे जिन्होंने जल के माध्यम से किसी ना किसी रूप में दुनिया की रक्षा की।

विष्णु भगवान के दो अहम अवतार
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी और जीवों की रक्षा के लिए अवतार लिया, तो उन्होंने जल के माध्यम से ही सभी कार्य संपन्न किए।
जैसे कि “मत्सय अवतार” (मछली अवतार) में उन्होंने जल के भीतर से वेदों की रक्षा की थी। इसके अलावा, “कूर्म अवतार” (कच्छप अवतार) में उन्होंने समुद्र मंथन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
क्या है “नारायण” का अर्थ ?
“नारायण” का एक अन्य अर्थ ये भी है कि वह सभी प्राणियों का अंतिम निवास स्थान हैं। सभी जीव अंततः उन्हीं में विलीन हो जाते हैं।
यही कारण है कि भक्तजन भगवान विष्णु को नारायण कहकर पुकारते हैं। यह नाम न केवल उनकी महानता को दर्शाता है, बल्कि उनके संरक्षण, पालन और सृष्टि के प्रति प्रेम को भी व्यक्त करता है।
इस प्रकार, भगवान विष्णु का “नारायण” नाम उनकी दिव्यता, सर्वव्यापकता और सृष्टि के प्रति उनकी जिम्मेदारी का प्रतीक है। यह नाम उनके अनंत गुणों और अद्वितीयता का परिचायक है, जिसे भक्तजन श्रद्धा और भक्ति से उच्चारित करते हैं।
Anshul Bhardwaj

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