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हरियाणा में प्रदूषण का स्तर बढ़ा: जुलाना में पराली जलाने का सिलसिला जारी, प्रशासन बेखबर

हरियाणा राज्य, विशेषकर जींद जिले के जुलाना क्षेत्र, वर्तमान में प्रदूषण के गंभीर संकट का सामना कर रहा है। यहाँ पराली जलाने की घटनाओं में तेजी आई है, जिससे वायु गुणवत्ता चिंताजनक रूप से प्रभावित हो रही है। प्रशासन ने इस समस्या के समाधान के लिए कई कदम उठाने का आश्वासन दिया है, लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति में कोई सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। इस लेख में हम इस समस्या के कारणों, प्रशासनिक उपायों, स्थानीय प्रतिक्रियाओं और संभावित समाधान का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।

हरियाणा के किसान, विशेषकर धान की खेती करने वाले, फसल के अवशेषों को जलाने का सहारा लेते हैं। यह प्रक्रिया फसल के अवशेषों से तुरंत मुक्ति पाने का एक आसान तरीका माना जाता है। हालांकि, इस प्रक्रिया के पर्यावरणीय प्रभाव गंभीर हैं। जुलाना में, किसान रात के अंधेरे में पराली जलाने की नई रणनीति अपना रहे हैं, ताकि प्रशासन की नजरों से बच सकें। रात होते ही खेतों में आग लगाना शुरू हो जाता है, जिससे धुएं का गुबार आसमान में फैलता है और वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है।

पराली जलाने के कारण

  1. जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों को अधिक उत्पादन के लिए अधिक फसल उगानी पड़ रही है। इससे फसल के अवशेषों की मात्रा बढ़ गई है।
  2. अवशेष प्रबंधन की कमी: किसान फसल के अवशेषों को प्रबंधित करने के लिए उचित उपायों की कमी का सामना कर रहे हैं।
  3. सरकारी नीतियों का अभाव: सरकार द्वारा पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए प्रभावी नीतियों का अभाव है।

प्रशासनिक उपाय

जींद प्रशासन ने पराली जलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है। कई टीमें गठित की गई हैं, जिनका उद्देश्य किसानों की निगरानी करना है। हालाँकि, प्रशासन के इस दावे का कोई ठोस परिणाम अब तक सामने नहीं आया है।

उपायों की कमी

  • अनुप्रयुक्त नीतियाँ: प्रशासन की योजनाएँ अधिकतर कागजों तक सीमित रह गई हैं। जमीनी स्तर पर ठोस कार्रवाई का अभाव है।
  • किसानों की जागरूकता: किसानों में प्रदूषण और इसके स्वास्थ्य पर प्रभावों के प्रति जागरूकता की कमी है, जिससे यह समस्या बढ़ रही है।

स्थानीय प्रतिक्रिया

जुलाना के किसान, रात के समय पराली जलाने की नई रणनीतियाँ अपना रहे हैं। यह स्थिति इस बात का संकेत है कि किसानों के लिए पराली जलाना एक आवश्यक उपाय बन गया है, भले ही यह पर्यावरण के लिए हानिकारक हो। स्थानीय निवासी और किसान इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उनकी खेती का तरीका उनके स्वास्थ्य और पर्यावरण को कितना प्रभावित कर रहा है।

हेमंत की टिप्पणियाँ

स्थानीय एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट ऑफिसर, हेमंत का कहना है कि विभाग के पास इस मुद्दे पर कोई सटीक लोकेशन उपलब्ध नहीं है। उन्होंने बताया कि जल्द ही मौके पर जाकर निरीक्षण किया जाएगा, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव

वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। धुएं में मौजूद कण स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जैसे:

  1. साँस की बीमारियाँ: प्रदूषित वायु से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और अन्य साँस संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
  2. हृदय रोग: उच्च प्रदूषण स्तर हृदय संबंधी समस्याओं को बढ़ा सकता है।
  3. गर्भावस्था पर प्रभाव: गर्भवती महिलाओं में प्रदूषण का उच्च स्तर गर्भ में विकासशील शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है।

समाधान की दिशा में कदम

इस समस्या के समाधान के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है:

  1. प्रौद्योगिकी का उपयोग: किसानों को पराली प्रबंधन के लिए तकनीकी मदद प्रदान की जानी चाहिए। मशीनरी और उपकरणों का उपयोग कर, किसानों को फसल के अवशेषों का उचित प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
  2. जागरूकता अभियान: किसानों को प्रदूषण के स्वास्थ्य पर प्रभावों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। स्कूलों, कॉलेजों और सामुदायिक आयोजनों के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
  3. सख्त नीतियाँ: पराली जलाने के खिलाफ सख्त और प्रभावी नीतियाँ बनानी चाहिए। नीतियों को लागू करने के लिए स्थानीय प्रशासन को अधिक सशक्त बनाना होगा।
  4. कृषि के विविधीकरण: किसानों को विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि वे फसल के अवशेषों की समस्या से बच सकें।
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