दिल्ली

Operation Sindoor: भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच अचानक दिल्ली पहुंचे सऊदी अरब के मंत्री, ईरानी विदेश मंत्री भी आए

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच उपजे तनाव ने न केवल उपमहाद्वीप में, बल्कि पूरी दुनिया में चिंता का माहौल पैदा कर दिया है। दोनों देशों के बीच जारी तनाव और सैन्य बयानबाज़ी को देखते हुए अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक प्रयास तेज़ हो गए हैं। दुनिया के कई बड़े देश इस तनाव को कम करने के लिए सक्रिय हो गए हैं और उसी कड़ी में सऊदी अरब और ईरान जैसे प्रभावशाली इस्लामिक देशों के वरिष्ठ प्रतिनिधि अचानक भारत पहुंच गए। यह दौरा न केवल दक्षिण एशियाई राजनीति में एक निर्णायक क्षण बनकर उभरा है, बल्कि यह वैश्विक शक्ति संतुलन और कूटनीतिक संवाद का अहम संकेत भी देता है।

सऊदी अरब के विदेश राज्यमंत्री का अचानक भारत दौरा

गुरुवार को सऊदी अरब के विदेश राज्यमंत्री अदेल अल-जुबैर अचानक भारत की राजधानी दिल्ली पहुंचे। यह दौरा उस समय हुआ जब भारत और पाकिस्तान के बीच ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद हालात बेहद संवेदनशील बने हुए हैं। भारतीय सेना द्वारा सीमापार आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने के बाद पाकिस्तान ने युद्ध की भाषा अपनाई है, जिससे सीमा पर तनाव अपने चरम पर पहुंच चुका है। ऐसे में सऊदी मंत्री का भारत दौरा किसी सामान्य कूटनीतिक यात्रा से अधिक गंभीर और उद्देश्यपूर्ण माना जा रहा है।

विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मुलाकात के बाद अदेल अल-जुबैर ने भारत के आतंकवाद विरोधी दृष्टिकोण को समझने और साझा करने का प्रयास किया। खुद डॉ. जयशंकर ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में यह जानकारी दी कि सऊदी मंत्री के साथ बातचीत सार्थक रही और आतंकवाद से सख्ती से निपटने की भारत की प्रतिबद्धता को उन्होंने साझा किया।

यह स्पष्ट संकेत है कि सऊदी अरब इस क्षेत्र में तनाव को कम करने और संवाद के जरिए स्थिरता बनाए रखने की भूमिका निभाना चाहता है। गौरतलब है कि सऊदी अरब भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ गहरे कूटनीतिक और आर्थिक संबंध रखता है। खासकर पाकिस्तान के लिए सऊदी अरब एक आर्थिक सहारा रहा है, जबकि भारत के साथ उसका ऊर्जा, निवेश और प्रवासी भारतीयों के कारण बहुआयामी रिश्ता है। इसलिए इस स्थिति में सऊदी मंत्री की भारत यात्रा दोनों देशों के बीच संतुलन साधने की एक कूटनीतिक कोशिश है।

ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची भी पहुंचे दिल्ली

सिर्फ सऊदी अरब ही नहीं, बल्कि ईरान भी इस मुद्दे पर सक्रिय भूमिका निभा रहा है। बुधवार की मध्यरात्रि ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची भी नई दिल्ली पहुंचे। ईरान, जो स्वयं क्षेत्रीय स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, भारत-पाक तनाव को लेकर सजग है और इस बार उसने अपने उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि को भारत भेजकर इस बात को दर्शाया है कि वह इस मामले में केवल पर्यवेक्षक नहीं बल्कि संवादकर्ता बनना चाहता है।

अराघची ने अपने भारत दौरे के दौरान विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर से मुलाकात की और भारत की चिंताओं को सुना। वे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मुलाकात करने वाले हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह दौरा केवल औपचारिक नहीं बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम है। माना जा रहा है कि ईरान, भारत के आतंकवाद विरोधी अभियान को समझना चाहता है और साथ ही पाकिस्तान के साथ किसी संभावित सैन्य संघर्ष से बचने के लिए भारत के रुख को भी समझना चाहता है।

आतंकवाद पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन

भारत लंबे समय से आतंकवाद के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन की मांग करता रहा है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद जिस तरह से भारतीय सेना ने सीमा पार आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की है, उसके पीछे भारत की आतंकवाद के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस नीति रही है। अब जब सऊदी अरब और ईरान जैसे देश भारत के इस अभियान के बाद कूटनीतिक संवाद के लिए दिल्ली पहुंचे हैं, तो यह भारत की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता और उसके दृष्टिकोण की मान्यता का संकेत भी है।

जयशंकर-अलजुबैर की बातचीत में आतंकवाद का मुद्दा केंद्र में रहा और यह बात भी सामने आई कि भारत अपने सुरक्षा हितों से समझौता नहीं करेगा। सऊदी अरब के मंत्री की ओर से हालांकि सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं आया, लेकिन यह साफ है कि उन्होंने भारत की चिंता को गंभीरता से लिया है। इसी प्रकार ईरानी मंत्री भी भारत की रणनीतिक सोच को समझने की कोशिश कर रहे हैं ताकि किसी बड़े संघर्ष की आशंका को टाला जा सके।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका और कूटनीतिक दबाव

भारत-पाकिस्तान के बीच हर बार की तरह इस बार भी तनाव तब बढ़ा जब पाकिस्तान ने सीमापार आतंकियों को समर्थन देना जारी रखा और भारत ने इसके जवाब में ठोस सैन्य कार्रवाई की। भारत की सैन्य कार्रवाई पूरी तरह आतंकवाद विरोधी रही, लेकिन पाकिस्तान ने इसे युद्ध जैसी स्थिति के रूप में प्रचारित किया। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ी और कई देशों ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की।

संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान, जर्मनी जैसे देश भी इस स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। लेकिन खास बात यह है कि इस बार सऊदी अरब और ईरान जैसे दो क्षेत्रीय ताकतवर देश सीधे भारत के संपर्क में आए हैं और यह उनकी उस कूटनीतिक सक्रियता को दर्शाता है, जो इस क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए जरूरी है।

भारत की स्थिति स्पष्ट और सशक्त

भारत ने इस पूरे प्रकरण में बेहद स्पष्ट रुख अपनाया है। विदेश मंत्री जयशंकर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह साफ कर दिया है कि भारत आतंकवाद से समझौता नहीं करेगा और अपनी सुरक्षा के लिए हर आवश्यक कदम उठाएगा। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत ने बार-बार यह बात दोहराई है कि वह पाकिस्तान से युद्ध नहीं चाहता, लेकिन वह आतंकवाद के खिलाफ चुप भी नहीं बैठ सकता।

इसलिए भारत की नीति दोहरी नहीं बल्कि सुसंगत और मजबूत है — वह शांतिपूर्ण समाधान की बात करता है लेकिन सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं करता। यही वजह है कि आज दुनिया भारत की बात सुन रही है, समझ रही है और उसे समर्थन भी दे रही है।

Vishal Singh

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