दिल्ली

मेयर चुनाव नहीं लड़ेगी AAP, BJP पर लगाया खरीद-फरोख्त का आरोप

दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को करारी शिकस्त मिलने के बाद से पार्टी बेकफुट पर दी और अब दिल्ली में होने वाले मेयर चुनाव से आम आदमी पार्टी ने अपने पैर पीछे खीच लिए है बिलकुल सही सुना वो आम आदमी पार्टी जिसने एक छत्र दिल्ली पर राज किया लेकिन दिल्ली की सत्ता जाने के बाद अब अरविंद केजरीवाल ने तय किया है कि उनकी पार्टी दिल्ली का मेयर चुनाव नहीं लड़ेगी इस बात की जानकारी दिल्ली की पूर्व सीएम आतिशी और दिल्ली ‘आप’ प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी
पूर्व सीएम आतिशी ने सीधा सीधा इसके पीछे बीजेपी को जिम्मेदारी ठहराया आतिशी ने कहा कि- बीजेपी जहां-जहां चुनाव हारती है, वहां पर साम-दंड -भेद सब अपनाती है बीजेपी दूसरी पार्टियों को तोड़कर सरकार बनाती है MCD को री-यूनिफिकेशन कराकर 272 से 250 वार्ड हुआ, चुनाव लेट हुए, एमसीडी डी-लिमिटेशन हुआ. एमसीडी का चुनाव गुजरात के चुनाव के साथ करवाया गया. फिर भी ‘आप’ एमसीडी में बहुमत लेकर आई. लेकिन अब हमारे पार्षदों को तोड़ा जा रहा है खरीदा जा रहा है लेकिन आम आदमी पार्टी ने किसी भी बीजेपी नेता से संपर्क नहीं किया ना ही उनके किसी भी पार्षद को फोन किया
हालांकि आतिशी के इन आरोपों को बीजेपी ने खारिज किया है बीजेपी नेताओं ने कहा कि आम आदमी पार्टी को सिर्फ और सिर्फ आरोप लगाने आते है बीजेपी नेताओं ने कहा कि इन आरोपों में अगर सच्चाई है तो साबित करे बीजेपी नेताओं ने कहा कि.. आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इससे पहले भी बीजेपी पर खरीद फरोख्त के आरोप लगाए है लेकिन साबित नहीं किए वीरेंद्र सचदेवा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि.. बीजेपी ने सरदार राजा इकबाल सिंह को मेयर का उम्मीदवार बनाया है और उप मेयर पद के लिए जय भगवान यादव को उम्मीदवार बनाया है दिल्ली में मेयर का चुनाव 24 अप्रैल को होगा और बोल सकते है अगर आम आदमी पार्टी इस चुनाव में हिस्सा नहीं ले रही है तो दिल्ली MCD में आम आदमी पार्टी का मेयर और डिप्टी मेयर बनाना लगभग तय है और बोल सकते है दिल्ली में सरकार बीजेपी की.. MCD में मेयर इनका तो कही ना कही बीजेपी के लिए राहत की खबर जरूर होगी लेकिन आने वाले दिनों में बीजेपी के लिए चुनौतियां भी काफी होगी क्योंकि बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टों में कई ऐसे वादे किए है, जिन्हे वो अभी तक पूरा नहीं कर पाई है हालांकि इस मामले को लेकर सीएम रेखा गुप्ता लगातार बोलती आई है सरकारी खजाना खाली है लेकिन दिल्ली की जनता से किया हर एक वादा पूरा होगा… और ऐसे में अगर मेयर भी इनका बनता है तो कही ना कही ये जिम्मेदारी डबल हो जाएगी..

आम आदमी पार्टी का फैसला और राजनीतिक पृष्ठभूमि

दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (AAP) के इस फैसले ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। कभी दिल्ली पर पूरी तरह से काबिज रहने वाली पार्टी का अब मेयर चुनाव से पीछे हटना केवल रणनीतिक फैसला नहीं बल्कि मौजूदा परिस्थितियों का परिणाम भी माना जा रहा है। पार्टी की तरफ से कहा गया है कि दिल्ली नगर निगम (MCD) में भ्रष्ट तरीकों से बहुमत को डगमगाने की कोशिशें की जा रही हैं और बीजेपी इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित कर रही है।

भविष्य की रणनीति या असमर्थता?

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आम आदमी पार्टी का यह कदम दो पहलुओं को दर्शाता है। एक ओर जहां यह कदम बीजेपी की रणनीति और कथित खरीद-फरोख्त के विरोध का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर यह AAP की वर्तमान स्थिति और भीतरू संकट को भी उजागर करता है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और पार्टी की गिरती लोकप्रियता ने निश्चित रूप से संगठन की कार्यशैली और मनोबल को प्रभावित किया है, जिसका असर इस मेयर चुनाव में भी देखा जा सकता है।

बीजेपी के सामने अवसर और जोखिम दोनों

बीजेपी ने जैसे ही अपने उम्मीदवार घोषित किए—राजा इकबाल सिंह को मेयर चुनाव के लिए और जय भगवान यादव को उपमेयर के लिए—तुरंत स्पष्ट हो गया कि अब इस चुनाव में मुकाबले की स्थिति नहीं रही। आम आदमी पार्टी का मैदान छोड़ना, बीजेपी को MCD में मजबूत स्थिति दिला सकता है। लेकिन यह आसान राह नहीं होगी। बीजेपी को अब अपने वादों पर खरा उतरना होगा—स्वच्छता, जल आपूर्ति, सड़कों की मरम्मत और अवैध निर्माण जैसी समस्याओं से जनता का ध्यान हटाना अब संभव नहीं होगा।

दिल्ली की जनता की उम्मीदें

चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में आए, दिल्ली की जनता को अब काम चाहिए, वादे नहीं। हर दिन बढ़ता प्रदूषण, जल संकट, ट्रैफिक जाम और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं ने नागरिकों का धैर्य तोड़ दिया है। यदि बीजेपी इस मेयर चुनाव में विजयी होती है, तो उससे जवाबदेही और पारदर्शिता की भी उतनी ही अपेक्षा होगी। अब जनता सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप से ऊपर उठकर ठोस परिणाम देखना चाहती है।

क्या यह ‘राजनीतिक विराम’ है या नई शुरुआत की तैयारी?

AAP का मेयर चुनाव से हटना क्या सिर्फ अस्थायी रणनीति है, या यह किसी बड़े पुनर्गठन की तैयारी है? क्या पार्टी दिल्ली से ध्यान हटाकर अन्य राज्यों में अपना आधार मजबूत करने की योजना बना रही है? इन सवालों का जवाब तो समय ही देगा, लेकिन इतना जरूर तय है कि दिल्ली की राजनीति एक बार फिर से नए मोड़ पर खड़ी है। अब सभी की नजरें 24 अप्रैल को होने वाले मेयर चुनाव

 

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