विपक्षी सांसदों की देशभक्ति से पाकिस्तान हुआ बेनकाब
पहलगाम आतंकी में हुए हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्तान जान हल्क में आ गई, क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय सेनाओं को आतंकियों पर एक्शन के लिए फ्री हैंड जो दे दिया है। जिसके बाद भारतीय सेनाओं ने ऑपरेशन सिंदूर के पाकिस्तान को इस तरह से ध्वस्त किया कि, उन्हें सीजफायर का फैसला लेना पड़ा। इतना ही नहीं केंद्र की मोदी सरकार ने कूटनीतिक रणनीति के जरिए दुनिया के सामने पाकिस्तान की पोल खोलने का फैसला लिया। इस रणनीति में सभी दलों के सांसदों को शामिल किया गया। मोदी सरकार ने इसमें विपक्षी सांसदों शशि थरूर, सलमान खुर्शीद, ओवैसी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की पोल खोलने की अहम जिम्मेदारी दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि ऐसे नेता की रही है जो अकसर ही अपने फैसलों से चौंकाते रहे हैं। ऐसा ही कुछ ऑपरेशन सिंदूर के बाद नजर आया, जब पाकिस्तान को बेनकाब करने के लिए सरकार ने कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर, सलमान खुर्शीद पर भरोसा जताया। इनके नाम को लेकर कांग्रेस पार्टी ने भी सवाल उठाए, बावजूद इसके केंद्र सरकार अपने फैसले पर अडी रही। इनके अलावा AMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी को भी बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया।
पीएम मोदी ने इन सियासी दिग्गजों पर यूं ही भरोसा नहीं जताया बल्कि इन नेताओं की कूटनीति और मुस्लिम राष्ट्रों के प्रति इनकी अहम जानकारी को ध्यान में रखा गया। ये रणनीति बिल्कुल वैसी ही है जैसा कि 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीएम नरसिम्हा राव ने अपनाया था, जब उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को इसी तरह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का नेतृत्व करने के लिए चुना था। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी के वहां पहुंचने पर पाकिस्तान भी हैरान था।
पीएम मोदी ने भी कुछ वैसा ही फैसला लिया। चाहे शशि थरूर हों या सलमान खुर्शीद या फिर ओवैसी, तीनों ही नेता मोदी सरकार के आलोचक रहे हैं। फिर भी प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें इस महत्वपूर्ण मिशन पर भेजा। इतना ही नहीं इन नेताओं ने अलग-अलग देशों में आतंकियों के पनाहगाह माने जाने वाले पाकिस्तान को जमकर लताड़ लगाई।
भारत की इस रणनीति का असर ये हुआ कि, भारतीय प्रतिनिधिमंडल जहां-जहां भी गए वहां की सरकार ने सभी मुद्दों को समझा। कई राष्ट्रों ने आतंकवाद के खिलाफ जीरो टोलरेंस नीति का सपोर्ट किया। इस कदम से पाकिस्तान पर एक तरह का अंतरराष्ट्रीय दबाव जरूर बढ़ा है कि, वो आतंकवाद को लेकर अपनी हरकतों से बाज आए।
आपको बता दें कि, पीएम मोदी ने जब डेलीगेशन में शशि थरूर का नाम शामिल किया तो कांग्रेस ने इस पर सवाल उठाए। देश की मुख्य विपक्षी पार्टी ने शशि थरूर का नाम कांग्रेस की ओर से नामित चार नेताओं में शामिल नहीं किया था। बावजूद इसके सरकार ने उन्हें प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया। इस फैसले को लेकर विवाद भी हुआ, कांग्रेस ने केंद्र पर पूरे मामले पर गेम खेलने का आरोप लगाया था। हालांकि, मोदी सरकार ने थरूर को ये जिम्मेदारी उनके लंबे कूटनीतिक अनुभव को देखते हुए दिया।
शशि थरूर को संयुक्त राष्ट्र में काम करने का लंबा अनुभव रहा है। ऐसे में वो पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेनकाब करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। शशि थरूर को पीएम मोदी ने इसीलिए डेलीगेशन में शामिल किया क्योंकि उन्हें पता था कि, किस देश का स्वभाव कैसा है और कहां कैसे जवाब देना है। थरूर शुरू से ही ऑपरेशन सिंदूर के समर्थक रहे। ये ही वजह रही, थरूर जहां-जहां गए वहां पाकिस्तान को जमकर सुनाया।
ऐसा ही फैसला कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद को लेकर भी मोदी सरकार ने लिया। खुर्शीद के भी लंबे राजनीतिक अनुभव को केंद्र सरकार ने तवज्जो दी। वहीं, AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी की छवि हमेशा से मोदी सरकार के बड़े आलोचक की रही है। हालांकि, पाकिस्तान के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर में जिस तरह से ओवैसी ने देशभक्ति दिखाई वो बेहद अहम थी। इस दौरान ओवैसी ने पाकिस्तान को लगातार खरी-खरी सुनाई और करारा जवाब देने की बात करते दिखाई दिए। उसकी शायद ही किसी ने उम्मीद की होगी। इसिलिए पीएम मोदी ने ओवैसी को बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाने का फैसला लिया। और ये फैसला एकदम सटीक साबित हो रहा है, क्योंकि अंतरारष्ट्रीय स्तर पर ओवौसी समेत तीन विपक्षी सांसदों ने पाकिस्तान की पोल खोलने का काम बेहतरीन तरीके से किया है.. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि, विपक्षी सांसदों ने अपनी देशभक्ति के जरीए, आंतकियों का पनाहगार पाकिस्तान की सच्चाई दुनिया के सामने लाने का काम कर रहे हैं।
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