living root bridge: मेघालय के ‘लिविंग रूट ब्रिज’ हैं बेहद कमाल
भारत एक ऐसा देश जहां हर रंग, हर पल, हर अनुभव इतना खूबसूरत है कि, आप चाह कर भी इसकी अपार सुंदरता और नजारों को भूल नहीं सकते। यहां हर एक चीज में हमें सुंदरता देखने को मिलती है, अब चाहे वो कोई पर्यटक स्थल हो या फिर कोई रास्ता। जी हां आप सही सुन रहे है यहां रास्ते, पुल, स्टेशन और भी बहुत सी चीजों पर ऐसी कारीगरी होती है, जिसको देखते ही आपके मुंह से निकलता है वाह… यहां तो हम जिंदगी भर रह सकते हैं। ऐसी खूबसूरती जिसकी तारीफ करते हम नहीं थकते ऐसा हमें भारत में देखने को मिलता है।
आज हम बात कर रहे हैं कुछ ऐसे पुलों की जो वाकई भारत की शान को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। वैसे तो आपने अभी तक जितने भी पुल देखे होंगे, वो इंजीनियरों द्वारा बनाए गए होंगे लेकिन आज हम जिस पुल के बारे में आपको बताने वाले हैं, वो पुल इंजीनियरों द्वारा नहीं बनाया गया है और यही इसकी खास बात है ये पुल खुद प्रकृति और आदिवासियों ने मिलकर बनाया गया है।
दोनों ने मिलकर एक ऐसा पुल बना दिया है, जिसे देख हर कोई दंग रह जाता है। आपको बता दूं कि, ये ब्रिज पेड़ की जड़ों से बनाया जाता है। इसलिए इसे लिविंग रूट ब्रिज कहा जाता है। ये ब्रिज कहीं और नहीं, बल्कि भारत के मेघालय राज्य में स्थित हैं। और ये सब देखने के बाद मानो ऐसा प्रतीत होता है कि, मेघालय को प्रकृति ने खुद अपने हाथों से सजाया है।
और इसका जीता-जागता उदाहरण मेघालय के लिविंग रूट ब्रिज हैं। ये 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। अपनी सुंदरता और अनूठेपन के लिए इन ब्रिजों को 2022 में World Heritage Sites की टेंटेटिव लिस्ट में शामिल किया गया। UNESCO ने इन पुलों को “जिंगकिएंग जरी” नाम से मान्यता दी है। इसका मतलब होता है- “जीवित जड़ों से बना पुल”।
आपको बता दें कि, ये कोई आम पुल नहीं हैं, बल्कि पेड़ की जड़ों से बने होते हैं और वे भी पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से। इन पुलों को खासी और जयंतिया जनजातियों ने कई सालों की मेहनत से तैयार किया है। ये पुल 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं और आज भी मजबूती से खड़े हुए हैं।
इनमें सबसे मशहूर है “डबल डेकर रूट ब्रिज” जो दो मंजिला पुल की तरह दिखता है। ये पुल नोंग्रियात गांव में मौजूद है और देखने में बेहद खूबसूरत लगता है। यहां पर्यटकों की भीड़ देखने को मिलती है। फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है।
क्यों खास हैं ये पुल?
• पूरी तरह से प्राकृतिक: इनमें सीमेंट, लोहा या मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
• टिकाऊ और मजबूत: ये पुल समय के साथ और मजबूत होते जाते हैं।
• पर्यावरण के अनुकूल: ये किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं फैलाते हैं।
• स्थानीय संस्कृति का हिस्सा: ये पुल स्थानीय लोगों की परंपरा और प्रकृति से जुड़ाव को दिखाते हैं।
• पर्यटन का आकर्षण: हर साल देश-विदेश से पर्यटकों की भीड़ यहां पहुंचती है।