हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत और कांग्रेस की अप्रत्याशित हार ने भारतीय राजनीति के तापमान को फिर से गर्म कर दिया है। इस परिणाम ने न केवल हरियाणा में बल्कि महाराष्ट्र और झारखंड के आगामी चुनावों पर भी गहरा प्रभाव डाला है।
हरियाणा में भाजपा ने फिर से सत्ता में वापसी की है, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 0.18% वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। यह हार कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है और इससे उसके भीतर फिर से आत्ममंथन की आवश्यकता उत्पन्न हुई है। राहुल गांधी और पार्टी के अन्य नेता अब इस हार को चुनाव आयोग और ईवीएम पर थोपने के बजाय अपनी रणनीतियों पर विचार कर रहे हैं।
महाराष्ट्र में भाजपा का सामना कांग्रेस के साथ-साथ उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी से होगा, जो कि एक कठिन चुनौती है। वहीं, झारखंड में मुकाबला बराबरी का है। इन चुनावों के नतीजे यह तय करेंगे कि मोदी और राहुल की सियासत का अगला कदम क्या होगा।
भाजपा को महाराष्ट्र में अपने सहयोगियों के साथ तालमेल बनाना होगा, जबकि कांग्रेस को अपने सहयोगी दलों से बेहतर संवाद स्थापित करना होगा। यदि कांग्रेस ने हरियाणा से सबक लिया, तो वह महाराष्ट्र और झारखंड में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है।
हरियाणा में जीत ने भाजपा और संघ के बीच बढ़ी दूरी को भी खत्म करने का काम किया है। यह देखा जा रहा है कि संघ ने भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकी थी। इस जीत ने भाजपा के अंदर नए अध्यक्ष की नियुक्ति पर चल रही चर्चाओं को भी प्रभावित किया है।
कांग्रेस की हार ने इंडिया गठबंधन में सहयोगियों के तेवर भी तेज कर दिए हैं। शिवसेना और आम आदमी पार्टी ने भी कांग्रेस को अपनी रणनीति में बदलाव करने की सलाह दी है। विपक्ष को अब यह समझने की जरूरत है कि एकजुट होकर ही वे भाजपा के खिलाफ मजबूती से खड़े हो सकते हैं।
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