आतंकवाद के खिलाफ ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत ने वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को बेनकाब करने के लिए एक आक्रामक कूटनीतिक अभियान की शुरुआत की है। इस कड़ी में केंद्र सरकार ने अगले सप्ताह से सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों को विभिन्न देशों में भेजने का निर्णय लिया है, जो वहां भारत का पक्ष मजबूती से रखेंगे और पाकिस्तान की भूमिका को वैश्विक जनमत के सामने लाने का प्रयास करेंगे।
इन प्रतिनिधिमंडलों की घोषणा के साथ ही कांग्रेस सांसद शशि थरूर का नाम विशेष चर्चा में आ गया है। जानकारी के अनुसार, थरूर को पांच प्रमुख देशों की यात्रा पर जाने वाले प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करने की जिम्मेदारी दी गई है। इस पर स्वयं थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “भारत सरकार ने हालिया घटनाओं पर देश का पक्ष रखने के लिए पांच प्रमुख देशों की यात्रा के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने का जो न्योता मुझे दिया है, उससे मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं। जब बात देशहित की हो और मेरी सेवाओं की जरूरत हो, तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। जय हिंद!”
थरूर के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है, क्योंकि कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि थरूर का नाम पार्टी की ओर से सुझाए गए चार नामों में शामिल नहीं था। कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने बयान जारी कर कहा कि सरकार ने जिन नामों को चुना है, वे पार्टी से परामर्श के बिना तय किए गए प्रतीत होते हैं।
कांग्रेस ने केंद्र सरकार को सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों के लिए आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, सैयद नासिर हुसैन और अमरिंदर सिंह राजा वडिंग के नाम भेजे थे। लेकिन इनमें से किसी को भी प्रमुख प्रतिनिधिमंडलों की अगुवाई नहीं सौंपी गई। इसके बजाय सरकार ने शशि थरूर को नेतृत्व की भूमिका में रखते हुए विपक्षी दलों के सुझावों को दरकिनार करने का आरोप झेला है।
कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि सरकार को चाहिए था कि जब वह ‘सर्वदलीय’ शब्द का उपयोग कर रही है तो असल में सभी दलों से पारदर्शी तरीके से नाम लिए जाएं और सहमति से प्रतिनिधिमंडल गठित किया जाए।
सरकार की मंशा साफ है कि वह हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले और उसके जवाब में किए गए ऑपरेशन सिंदूर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करना चाहती है। इस उद्देश्य से विदेश मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की निगरानी में सात टीमों को यूरोप, अमेरिका, खाड़ी देशों और एशिया के कुछ अहम देशों में भेजा जाएगा।
इन टीमों का उद्देश्य होगा –
भारत के खिलाफ आतंकवादी नेटवर्क की पाकिस्तान आधारित जड़ों को उजागर करना।
वैश्विक समुदाय को भारत के रक्षात्मक और आक्रामक सुरक्षा रुख से अवगत कराना।
कश्मीर में शांति, विकास और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली की सच्ची तस्वीर सामने रखना।
लेकिन विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस को इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी दिखाई दे रही है। पार्टी का तर्क है कि अगर विपक्ष को सिर्फ ‘विलेन के बिना मंच’ पर बैठाने का काम किया जा रहा है, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मजाक है।
हालांकि शशि थरूर ने अपने बयान में स्पष्ट किया है कि यह भूमिका उन्होंने देशहित में स्वीकार की है और इसे दलगत राजनीति से ऊपर रखते हुए देखा जाना चाहिए, लेकिन कांग्रेस के ही कुछ वरिष्ठ नेताओं के मन में यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या थरूर ने पार्टी नेतृत्व को सूचित किए बिना यह दायित्व स्वीकार किया?
शशि थरूर, जो पूर्व विदेश राज्य मंत्री और संयुक्त राष्ट्र में उच्च पदों पर रह चुके हैं, की विदेश मामलों पर मजबूत पकड़ और वैश्विक मंचों पर प्रस्तुतिकरण की क्षमता सरकार को आकर्षित कर सकती है, लेकिन यह परिस्थिति कांग्रेस में असहजता का कारण बनती दिख रही है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सरकार के इस कदम पर व्यंग्यात्मक अंदाज में टिप्पणी करते हुए कहा, “जब सरकार सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की बात करती है, तो उसे सभी दलों के नामों का सम्मान करना चाहिए। यदि प्रतिनिधिमंडल में विपक्ष के ‘चयनित’ चेहरे ही लिए जाएंगे, तो इसे सर्वदलीय कहना भ्रामक होगा।”
उन्होंने कहा कि यदि सरकार सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय एकता का संदेश देना चाहती है, तो विपक्ष की आवाज को भी बराबरी से प्रतिनिधित्व देना चाहिए।
वहीं भाजपा ने कांग्रेस के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। पार्टी के प्रवक्ता ने कहा कि शशि थरूर का चयन उनकी योग्यता और वैश्विक मामलों की समझ को देखते हुए किया गया है। “यह समय देश को एकजुट दिखाने का है, न कि आंतरिक राजनीति का। कांग्रेस को देशहित के इस प्रयास का समर्थन करना चाहिए, न कि इसमें बाधा डालनी चाहिए।”
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