जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर गहरा दुख जताया है और एक बार फिर पाकिस्तान को करारा संदेश दिया है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि “अब घड़ा भर चुका है, अब वक्त आ गया है कि आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंका जाए।” फारूक अब्दुल्ला ने यह बयान उस समय दिया जब पूरा देश पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले से उबरने की कोशिश कर रहा है, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई।
‘अब बस बहुत हो चुका’: फारूक अब्दुल्ला का भावुक बयान
शनिवार को एएनआई से बात करते हुए फारूक अब्दुल्ला ने कहा, “अब घड़ा भर चुका है। यह हमला सिर्फ कश्मीर पर नहीं, बल्कि पूरे भारत की आत्मा पर हमला है। जो लोग इस तरह की बर्बरता करते हैं, वे इंसान नहीं हैं। वे राक्षस हैं और वे खुद को मुसलमान कहकर इस्लाम का अपमान करते हैं। इस्लाम कभी भी निर्दोषों की हत्या की इजाजत नहीं देता।”
उन्होंने आगे कहा, “मैं उस दुल्हन से कहना चाहता हूं जिसकी शादी को सिर्फ छह दिन हुए थे, उस छोटे बच्चे से जिसने अपने पिता को खून से लथपथ देखा – हम सब रोए, हमने खाना नहीं खाया। यह सिर्फ उनका नुकसान नहीं, हमारा भी दर्द है।”
‘कश्मीर पाकिस्तान के साथ कभी नहीं था, और न ही कभी होगा’
अपने लंबे राजनीतिक अनुभव और घाटी के हालात की गहरी समझ रखने वाले फारूक अब्दुल्ला ने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा, “कश्मीर ने कभी पाकिस्तान का साथ नहीं दिया और न ही कभी देगा। ये बात पाकिस्तानी नेतृत्व को समझ लेनी चाहिए। जो आतंकी घटनाएं यहां फैलाई जा रही हैं, वे कश्मीरियों को कमजोर नहीं बना सकतीं। हम इन घटनाओं से और मज़बूत होंगे।”
उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से भारत में शांति नहीं बिगाड़ सकता। भारत एकजुट है और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने को तैयार है।
शहीदों को नहीं भूलेगा देश
फारूक अब्दुल्ला ने हमले में जान गंवाने वालों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और उनके परिवारों को भरोसा दिलाया कि उनकी कुर्बानियां व्यर्थ नहीं जाएंगी। उन्होंने कहा, “सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। हमें आतंक के हर सरगना को उसकी मांद से निकालकर खत्म करना होगा। यह कोई पहली बार नहीं है। हम 35 सालों से आतंकवाद झेल रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी जीत हासिल नहीं की और न ही कर पाएंगे।”
सिंधु जल संधि पर भी उठाए सवाल
फारूक अब्दुल्ला ने सिंधु जल संधि को लेकर भी भारत सरकार से नाराज़गी जताई और कहा कि यह समझौता जम्मू-कश्मीर के लोगों के खिलाफ गया है। उन्होंने सवाल उठाया, “जब ये संधि हुई तो जम्मू-कश्मीर के लोगों से कोई सलाह नहीं ली गई थी। यह कैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था है?”
उनका कहना था कि इस संधि से जम्मू-कश्मीर को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है। “हमें अपने ही राज्य में बिजलीघर नहीं बनाने दिए जाते, हमें पानी की एक बाल्टी के लिए भी अनुमति लेनी पड़ती है। मैं भारत सरकार से अपील करता हूं कि जम्मू के लोगों के लिए इस पानी का कुछ हिस्सा उपलब्ध करवाया जाए।”
‘अब सिर्फ निंदा नहीं, जवाब चाहिए’
फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि अब केवल निंदा करने का समय नहीं है, बल्कि ठोस और निर्णायक जवाब देने की जरूरत है। उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि सुरक्षा बलों को आतंक के खिलाफ पूरी छूट दी जाए और जो भी तत्व इस आग में घी डाल रहे हैं, उन्हें बिना देर किए दंडित किया जाए।
उन्होंने कहा, “आज जरूरत है कि हम हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – सभी मिलकर आतंक के खिलाफ एक स्वर में खड़े हों। ये लड़ाई किसी एक समुदाय या धर्म की नहीं है, ये मानवता की रक्षा की लड़ाई है।”
विपक्ष और समाजिक नेताओं की प्रतिक्रिया
फारूक अब्दुल्ला के इस बयान की कई विपक्षी नेताओं और सामाजिक संगठनों ने सराहना की है। उनका कहना है कि ऐसे समय में जब देश दुख और क्रोध में है, एक वरिष्ठ नेता द्वारा दिया गया स्पष्ट और मजबूत संदेश आवश्यक था।
कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने कहा, “फारूक अब्दुल्ला ने जो बातें कही हैं, वे देश की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। पाकिस्तान को अब समझना होगा कि भारत अब सहन नहीं करेगा।”
सिंधु जल संधि: क्या वाकई जम्मू-कश्मीर को नुकसान?
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई थी, जिसमें तीन पूर्वी नदियों – सतलुज, रावी, और ब्यास – भारत को, और तीन पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चेनाब – पाकिस्तान को दी गईं। फारूक अब्दुल्ला का कहना है कि इस संधि से जम्मू-कश्मीर के लोगों को अपने संसाधनों पर नियंत्रण नहीं मिला।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह संधि जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता को कमजोर करने का एक प्रयास भी थी, क्योंकि राज्य को बिना पूछे इस समझौते में शामिल कर दिया गया।