MAJOR MOHIT SHARMA: अंडरकवर एजेंट मेजर मोहित शर्मा की कहानीMAJOR MOHIT SHARMA: अंडरकवर एजेंट मेजर मोहित शर्मा की कहानी

MAJOR MOHIT SHARMA: अंडरकवर एजेंट मेजर मोहित शर्मा की कहानी

भारत की सर-जमीं, ऐसे वीर जवानों से भरी हुई है…
जो, अपनी जान की परवाह किए बिना ही, दुश्मन का काम-तमाम करना जानते हैं,
इतना ही नहीं दुश्मन देशों में घुसकर, आतंक का फन कुचलकर, अपने वातन सुरक्षित वापस भी लौट आते हैं…
जिनपर पूरे देश को गर्व है…

आज हम भारतीय सेना के एक ऐसे ही वीर जवान की कहानी आपको बताने जा रहे हैं…. जिसने आतंकियों को ख़त्म करने के लिए आतंकवादी का भेष बनाकर पहले उनका विश्वास जीता और फिर उनके ही बीच पहुंचकर, उनका ही काम तमाम कर दिया था।

जी हां, वो वीर जवान है, मेजर मोहित शर्मा…जो,

जिनका जन्म 13 जनवरी 1978 को हरियाणा के रोहतक जिले में हुआ था.
मेजर मोहित शर्मा बचपन से ही पढने में अव्वल थे
देश भक्ति का जज्बा सीने में लिए
मेजर मोहित शर्मा 11 दिसंबर, 1999 को इंडियन मिलिट्री एकेडमी से पासआउट हुए
और
उन्हें पहला कमीशन 5 मद्रास में मिला। उनकी पहली पोस्टिंग हैदराबाद थी
जहां से उन्‍हें जम्मू कश्मीर में 38 राष्‍ट्रीय राइफल्‍स के साथ तैनात किया गया।

बेशक मेजर मोहित शर्मा आज हमारे बीच में नहीं है… लेकिन, उनकी बहादुरी के किस्से आज लोगों के जहन में जीवंत हैं…. मेजर मोहित शर्मा ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय हर बार दिया है… मेजर मोहित शर्मा की जांबाजी का एक ऐसा किस्सा है, जो हर नौजवान में देशभक्ति की भावना को और बढ़ा देगा। दरअसल, मेजर मोहित शर्मा ने दुश्मन देश पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया था। मेजर शर्मा ने इस काम के लिए सबसे पहले अपना नाम और हुलिया पूरी तरह से बदल लिया।

आतंकवादियों के गढ़ में घुसने से पहले उन्होंने लम्बी दाढ़ी और मूंछ रख कर आतंकियों की तरह अपने हाव-भाव बनाए। फिर इफ्तिखार भट्ट नाम के जरिए वो हिजबुल आतंकी अबू तोरारा और अबू सबजार के संपर्क में आए। आतंकियों के संपर्क में आने के बाद मेजर शर्मा ने बतौर इफ्तिखार भट्ट दोनों हिजबुल आतंकियों को ये कहकर विश्वास दिलाया कि, भारतीय सेना ने उनके भाई को साल 2001 में मारा था और अब वो बस सेना पर हमला करके बदला लेना चाहते हैं। उन्होंने अपने मंसूबे बताकर आतंकियों से कहा कि, इस काम में उन्हें उन दोनों की मदद चाहिए।

मेजर शर्मा ने दोनों आतंकियों से कहा कि, उन्हें आर्मी के चेक प्वाइंट पर हमला बोलना है और उसके लिए वो जमीनी काम कर चुके हैं।
मेजर मोहित शर्मा के इस ऑपरेशन में आतंकियों ने कई बार उनसे उनकी पहचान पूछी। लेकिन वो कहते, “मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। मुझको सीखना है।” तोरारा ने तो कई बार उनकी पहचान के बारे में उनसे पूछा। लेकिन आखिरकार वे मेजर शर्मा के जाल में फंस गए और मदद करने के लिए राजी हो गए।

आतंकियों ने उन्हें बताया कि, वो कई हफ्तों तक अंडरग्राउंड रहेंगे और आतंकी हमले के लिए मदद जुटाएंगे। मेजर शर्मा ने आतंकियों से कहा कि, वो तब तक घर नहीं लौटेंगे, जब तक कि, अपने भाई की मौत का बदला नहीं ले लेते… और सेना के चेक प्वाइंट को उड़ा नहीं देते।

जिसके बाद दोनों आतंकियों ने सब व्यवस्था कर ली। साथ ही पास के गांव से 3 अन्य आतंकियों को भी बुला लिया। बीच में एक बार आतंकी तोरारा को मेजर शर्मा पर दोबारा संदेह हुआ, तो उसने मेजर मोहित शर्मा से उनकी पहचान पूछी। मेजर ने उससे कहा,“अगर मेरे बारे में कोई शक है तो मुझे गोली मार दो।” अपने हाथ से राइफल छोड़ते हुए, वो आतंकियों से बोले, “तुम ऐसा नहीं कर सकते, अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है। इसलिए तुम्हारे पास अब मुझे मारने के अलावा कोई चारा नहीं है।”

मेजर की बातें सुनकर दोनों आतंकी असमंजस में पड़ गए। इतने में मेजर मोहित शर्मा को मौका मिला और उन्होंने थोड़ी दूर जाकर अपनी 9 एमएम पिस्टल को लोड किया और दोनों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। उन्होंने 2 गोलियां आतंकियों के छाती पर मारी और एक सिर में। इसके बाद वो उनके हथियार लेकर नजदीक के आर्मी कैंप में आ गए। मेजर मोहित शर्मा ने उन्‍हें इतना भरोसे में ले लिया था कि, जब उन्‍होंने आतंकियों के सामने सेना के काफिले पर हमले की योजना बताई तो आतंकियों ने उनकी बात पर यकीन कर लिया था. मेजर मोहित इन आतंकियों के साथ शोपियां में अज्ञात जगह पर एक छोटे से कमरे में रहते थे.

बात 21 मार्च, 2009 की करें, तो उस वक्त, जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में मेजर मोहित शर्मा जिस ऑपरेशन को लीड कर रहे थे, उस ऑपरेशन को नाम दिया गया था ‘ऑपरेशन रक्षक’। दरअसल मेजर मोहित शर्मा को इंटेलिजेंस से ये जानकारी मिली थी कि, कुपवाड़ा स्थित हफरुदा के घने जंगलों में कुछ आतंकी छिपे हुए हैं और वो हमले की योजना बना रहे हैं। इस बात की जानकारी मिलते ही मेजर शर्मा ने पूरे ऑपरेशन की प्‍लानिंग की और अपनी जान की परवाह किए बिना निर्भीक अपनी टुकड़ी के साथ घने जंगल में दहशतगर्दों से लोहा लेने निकल पड़े।

जंगल में छिपे आतंकियों को इस बात का आभास जैसे ही हुआ कि, वो भारतीय सेना की टुकड़ी से घिर चुके हैं, उन्होंने तुरंत गोलीबारी शुरू कर दी और देखते ही देखते ये ऑपरेशन मुठभेड़ के रूप में तब्दील हो गया। मेजर शर्मा की टुकड़ी आतंकियों की गोलीबारी का लगातार जवाब दे रही थी। हालांकि तभी एक ऐसा समय आया जब मेजर शर्मा की टीम के कमांडों आतंकियों की गोलीबारी की चपेट में आ गए।

ये देखते ही मेजर मोहित शर्मा ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए अपने साथियों को बचाने के लिए आगे आ गए और उन्होंने 2 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। इसी दौरान मेजर मोहित के सीने में एक गोली लग गई। घायल होने के बावजूद वो रुके नहीं और वे अपने कमांडोज को लगातार निर्देश देते रहे। घायल अवस्था में भी मेजर शर्मा ने आगे बढ़कर चार्ज संभाला और वहां मौजूद अन्य 2 आतंकवादियों को भी मौत के घाट उतार दिया। लेकिन इस बीच मेजर मोहित शर्मा गोली लगने के कारण बुरी तरह से घायल हो चुके थें और आखिरकार अंत में वो सीमा की सुरक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।.

देश के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले मेजर मोहित शर्मा को मरणोपरांत शांति-कालीन सैन्य अलंकरण अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। ऐसे वीर जवानों को श्रद्धांजलिपूर्वक नमन…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *