जगतगुरु रामभद्राचार्य को मिला, 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार
क्या आपने हनुमान चालीसा की ये चौपाई पढ़ी है
‘शंकर सुवन केसरी नंदन’
‘सब राम तपस्वी राजा
‘सदा रहो रघुपति के दासा’
‘जो सत बार पाठ कर कोई’
जी हां बिल्कुल ये सभी अलग अलग चौपाइयां आपको हनुमान चालीसा को बीच में ही मिलेंगी और आप इन्हें इसी तरीके से पढ़ते भी होंगे लेकिन अगर मैं कहूं कि आप गलत कर रहे है तो आपको मेरी बात पर यकीन नहीं होगा। लेकिन अगर मैं कहूं पूज्य संत, पद्मविभूषित जगद्गुरु तुलसीपीठाधीश्वर रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज ने ऐसा कहा था और इसमें त्रुटियां बताकर इसको ठीक किया था और सभी से विनम्र अनुरोध किया था कि इन चौपाइयों को सही ढंग से पढ़ा जाए।
उन्होंने चालीसा की चौपाइयों का शुद्ध उच्चारण करते हुए बताया कि ‘शंकर सुवन केसरी नंदन’ छपा है, जबकि इसमें सुवन की जगह स्वयं होना चाहिए. तर्क ये था कि हनुमान जी स्वयं भगवान शिव के अवतार हैा. वह शंकर जी के पुत्र नहीं हैं. इसलिए चौपाई में छपा ‘सुवन’ अशुद्ध है. इसके अलावा एक चौपाई में ‘सब राम तपस्वी राजा’ के बजाय ‘सब पर राम राज फिर ताजा’ होना चाहिए.
एक चौपाई में छपा ‘सदा रहो रघुपति के दासा’ के बजाय ‘सादर रहो रघुपति के दासा’ होना चाहिए और चौथी अशुद्धि के तौर पर उन्होंने बताया कि ‘जो सत बार पाठ कर कोई’ के बजाय ‘यह सत बार पाठ कर जोही’ होना चाहिए।
उन्होंने हनुमान चालीसा में इन अशुद्धियों को निकाला और खूब चर्चा का विषय बने और ना केवल चर्चा बल्कि बयान बाजी भी उस समय पूरी पूरी दिखाई दी। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर मैं ये पुरानी बात अब क्यों निकाल कर सामने ला रही हूं तो मैं सिर्फ आपको याद दिला रही हूं कि आखिर संत रामभद्राचार्य ने किस तरीके से अशुद्धियों को पकड़ा और उन्हें ठीक करने की बात प्रस्तुत की।
लेकिन अब मैं आपको बता दूं कि इन्हीं पूज्य संत, रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज को अब माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी से संस्कृत भाषा व साहित्य के क्षेत्र में उनके अतुल्य योगदान के लिए ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार-2023’ से सम्मानित किया गया है।
वही इस अवसर पर उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित होने पर एक्स पर पोस्ट किया और कहा कि
आज माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी द्वारा पूज्य संत, पद्मविभूषित जगद्गुरु तुलसीपीठाधीश्वर रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज को संस्कृत भाषा व साहित्य के क्षेत्र में उनके अतुल्य योगदान के लिए प्रतिष्ठित ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार-2023’ से सम्मानित होने पर हृदयतल से बधाई! आपका कालजयी रचना संसार वैश्विक साहित्य जगत के लिए अमूल्य धरोहर है। आपका सम्मान संत परंपरा, भारत की साहित्यिक विरासत एवं राष्ट्रधर्म का सम्मान है।
क्या आप मान सकते हैं कि एक व्यक्ति, जिसकी आंखों की रोशनी दो माह की उम्र में ही चली गई हो, वो शख्स 22 भाषाएं जानता होगा और उसने 80 ग्रंथ रच दिए होंगे. आप कहेंगे ये नामुमकिन है, लेकिन ये सच है. राम मंदिर के लिए भी उनके संघर्ष को नकारा नहीं जा सकता है।
आपको बता दूं कि
जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर में सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में मकर संक्राति के दिन 1950 में हुआ था. और भारत सरकार ने उनकी रचनाओं के लिए उन्हें पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया है.
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