Swami Avdheshananda Giri Ji Maharaj: हरिसेवा आश्रम के वार्षिकोत्सव पर हुआ “सन्त-सम्मेलन”
श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ अनन्तश्रीविभूषित जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामण्डलेश्वर पूज्यपाद श्री स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज “पूज्य प्रभुश्री जी” ने आज हरिसेवा आश्रम के वार्षिकोत्सव के पावन अवसर पर महामण्डलेश्वर पूज्य स्वामी श्री हरिचेतनानन्द जी महाराज की सद्भावना से आयोजित “सन्त-सम्मेलन” में दिव्य एवं प्रेरक उद्बोधन प्रदान किया।
अपने सारगर्भित प्रवचन में पूज्य प्रभुश्री जी ने भगवान भाष्यकार, श्रीमदाद्यजगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज द्वारा स्थापित भारत की गौरवमयी संन्यास परम्परा की आलोकमयी महिमा को उद्घाटित करते हुए, त्याग, तपस्या और संस्कारों से अभिसिंचित समाज के निर्माण में सन्तों की अद्वितीय भूमिका को रेखांकित किया।
“पूज्य प्रभुश्री जी” ने ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ के माध्यम से भारत के शौर्य और प्रतिष्ठा के वैश्विक विस्तार का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके मूल में धर्म की अपार शक्ति तथा सन्तों की तपोमयी साधना का अदृश्य किन्तु निर्णायक योगदान है। उन्होंने इस अभियान को राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा का प्रतीक बताते हुए, माननीय प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी का हृदय से अभिनन्दन किया, जिनकी दूरदृष्टि और दृढ़ संकल्प ने भारत को गौरव के नूतन शिखरों पर प्रतिष्ठित किया है।
इस “सन्त सम्मेलन” की अध्यक्षता महानिर्वाणी पीठाधीश्वर आचार्यमहामण्डलेश्वर पूज्य श्री स्वामी विशोकानन्द भारती जी महाराज ने की।
इस अवसर पर उत्तराखण्ड के पूर्व-मुख्यमंत्री एवं महाराष्ट्र के पूर्व-राज्यपाल आदरणीय श्री भगत सिंह कोश्यारी जी, पूर्व-केन्द्रीय मंत्री आदरणीय श्री अजय भट्ट जी, गीता मनीषी महामण्डलेश्वर पूज्य श्री स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज, जयराम आश्रम के परमाध्यक्ष आदरणीय ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी जी, लोकसभा सांसद आदरणीय श्री साक्षी महाराज जी, सोनीपत के सांसद आदरणीय श्री सतपाल ब्रह्मचारी जी,
महामण्डलेश्वर पूज्या संतोषी माताजी, पूज्य श्री स्वामी रामदास जी महाराज, महामण्डलेश्वर आदरणीया मैत्रेयी गिरि जी, पूज्य श्री कुमार स्वामी जी, आचार्य ज्ञानदेव सिंह जी महाराज, महामण्डलेश्वर पूज्य श्री स्वामी यतीन्द्रानन्द जी महाराज, पूज्य श्री स्वामी देवानन्द जी महाराज, राज्यसभा सांसद आदरणीय श्री नरेश बंसल जी एवं कुलपति आदरणीय श्री दिनेश चन्द्र शास्त्री जी, समन्वय सेवा ट्रस्ट – भारत माता मन्दिर के सचिव आदरणीय श्री आई.डी. शास्त्री जी सहित अनेकों श्रद्धेय सन्त, विद्वान एवं गणमान्य जन उपस्थित रहे।
इसी क्रम में, आज भारत माता मन्दिर के संस्थापक, संन्यास परम्परा के गौरवस्वरूप, भारतमाता के परम उपासक, समन्वय के पुरोधा, परमाराध्य ब्रह्मलीन पद्मभूषण, निवृत्तमान जगद्गुरु शंकराचार्य, परम गुरुदेव भगवान अनन्तश्री विभूषित पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी महाराज की दिव्य प्रेरणा से संस्थापित “भारत सदन” में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा अनुष्ठान में “पूज्य प्रभुश्री जी” ने अपना पावन सान्निध्य प्रदान किया और शुभाशीर्वचन दिए।
इस कथा के व्यास कच्छ, गुजरात से पधारे आदरणीय श्री सुमित जी महाराज हैं, जिनकी वाणी में रस और रसमयता दोनों समाहित हैं।
अपने आशीर्वचन में “पूज्य प्रभुश्री जी” ने कहा — “श्रद्धा ही समाधान का हेतु है। जीवन में जितने संशय और द्वंद्व हैं, वे केवल भगवद्कथा के श्रवण से दूर होते हैं। जैसे सूर्य के उदय होते ही अंधकार मिट जाता है, वैसे ही श्रीमद्भागवत कथा से हमारे भीतर का अज्ञान और विकार नष्ट होते हैं।”
उन्होंने कहा कि परीक्षित महाराज ने श्री शुकदेव जी के श्रीमुख से कथा श्रवण कर मृत्यु के भय को भी तज दिया था — यह कथा का आध्यात्मिक प्रभाव है।
“पूज्य प्रभुश्री जी” ने श्रीमद्भागवत की महिमा का आलोकपूर्वक निरूपण करते हुए कहा कि यह न केवल ज्ञान का दीपक है, बल्कि जीवन की दिशा और दशा को भी बदलने की दिव्य शक्ति रखती है।