PUSHKAR KUMBH: भारत के पहले गांव में शुरू पुष्कर कुंभ
उत्तराखंड के चमोली जिले के सीमांत गांव माणा में स्थित केशव प्रयाग में 12 वर्षों बाद पुष्कर कुंभ का भव्य आयोजन विधि-विधान के साथ आरंभ हो गया है। इस आयोजन को लेकर बदरीनाथ धाम और माणा गांव में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है। देश के कोने-कोने से, विशेष रूप से दक्षिण भारत से, तीर्थयात्री इस अद्वितीय धार्मिक अवसर का साक्षी बनने के लिए पहुंच रहे हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब बृहस्पति ग्रह 12 वर्षों में मिथुन राशि में प्रवेश करता है, तब माणा गांव में अलकनंदा और सरस्वती नदियों के संगम स्थल – केशव प्रयाग – में पुष्कर कुंभ का आयोजन किया जाता है। ये स्थान हिन्दू धर्म के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि, यहीं पर महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी और दक्षिण भारत के महान संतों – रामानुजाचार्य और माध्वाचार्य – ने मां सरस्वती से ज्ञान प्राप्त किया था।
वहीं जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने कहा कि
“पुष्कर कुंभ के सफल संचालन के लिए प्रशासन ने सभी आवश्यक तैयारियां पूरी कर ली हैं। तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए पैदल मार्गों का सुधारीकरण किया गया है, साइन बोर्ड लगाए गए हैं, और पुलिस एवं एसडीआरएफ की तैनाती सुनिश्चित की गई है। साथ ही, तहसील प्रशासन को नियमित निगरानी के निर्देश दिए गए हैं।”
कुंभ के दौरान श्रद्धालु केशव प्रयाग में स्नान कर पूजा-अर्चना करते हैं। यह आयोजन धार्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उत्तर भारत का हिमालयी क्षेत्र और दक्षिण भारत की वैष्णव परंपरा इस अवसर पर एक मंच पर आती हैं। माणा गांव में श्रद्धालुओं की आवाजाही से एक उत्सव जैसा माहौल बन गया है। स्थानीय लोग भी इस आयोजन में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं और तीर्थयात्रियों का स्वागत कर रहे हैं। वही स्थानीय श्रद्धालुओं का कहना है कि
“हमें गर्व है हमारा गांव इतनी बड़ी धार्मिक परंपरा का साक्षी बन रहा है। यहां देश के कोने-कोने से लोग आ रहे हैं, और ये हम सभी के लिए एक सौभाग्य की बात है।”
पुष्कर कुंभ ना केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि ये ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को भी मजबूती से प्रकट करता है। यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक विविधता और एकता को उजागर करता है। विभिन्न भाषाओं, रीति-रिवाजों और परंपराओं से जुड़े श्रद्धालु माणा गांव में एक साथ आकर एक साझा भारतीय संस्कृति की अनुभूति कर रहे हैं।
वहीं, सीएम धामी ने कहा कि,
तीर्थ स्थल न केवल हमारी धार्मिक आस्था के केंद्र हैं,बल्कि ये देश की एकता और सांस्कृतिक एकजुटता के भी प्रतीक हैं। विभिन्न स्थानों से आने वाले श्रद्धालु इन स्थलों पर एकत्र होकर ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को साकार करते हैं। इसी क्रम में माणा गांव में आयोजित पुष्कर कुंभ उत्तर को दक्षिण से जोड़ रहा है।
आपको बता दें कि, पुष्कर कुंभ मेला 15 मई 2025 से 25 मई, 2025 तक चलेगा. बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने इस आयोजन के लिए विशेष तैयारियां की हैं. यहां के रास्तों को ठीक किया गया है, ताकि श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े. साथ ही यहां पर ऑनलाइन रूम की भी बुकिंग भी शुरु की गई है.
पुष्कर कुंभ मेले के आयोजन में भारत के प्रमुख आचार्य, जैसे शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और माधवाचार्य हर 12 साल में एकबार यहां आते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ाने का काम करते हैं. यहां पर आकर वेदव्यास की तपस्थली पर पूजा अर्चना और ध्यान करते हैं. कहते हैं वेदव्यास जी ने यहां केशव प्रयाग में अपनी तपस्या के दौरान ही महाभारत की रचना की थी