नई दिल्ली – जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए दिल दहला देने वाले आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने सुरक्षा और रणनीतिक मोर्चे पर तेज़ी से कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। रविवार को वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोक कल्याण मार्ग स्थित उनके आवास पर मुलाकात की। इस महत्वपूर्ण बैठक का उद्देश्य न केवल पहलगाम आतंकी हमले से उत्पन्न हालात की समीक्षा करना था, बल्कि पाकिस्तान से बढ़ते तनाव के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति पर गंभीर विमर्श भी हुआ।
इससे एक दिन पहले, नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी ने भी प्रधानमंत्री से मुलाकात कर अरब सागर में समुद्री गतिविधियों और संभावित खतरों को लेकर जानकारी साझा की थी। इन दोनों उच्चस्तरीय बैठकों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब किसी भी संभावित खतरे का जवाब देने के लिए पूरी तरह सतर्क है और सैन्य विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर रहा है।
प्रधानमंत्री और वायुसेना प्रमुख की बैठक उस उच्चस्तरीय बैठक के कुछ ही दिनों बाद हुई है जिसकी अध्यक्षता स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने की थी। उस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी, वायुसेना प्रमुख एपी सिंह, नौसेना प्रमुख दिनेश त्रिपाठी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल मौजूद थे। यह बैठक सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) के स्तर पर बुलाई गई थी और इसका फोकस पहलगाम हमले के बाद की स्थिति और पाकिस्तान की भूमिका को लेकर रणनीतिक समीक्षा था।
गौरतलब है कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हमले में आतंकियों ने एक बस पर गोलियां बरसाकर 26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या कर दी थी। इस जघन्य कृत्य के बाद सरकार ने राष्ट्रीय संकल्प दोहराते हुए साफ कहा कि आतंकवादियों और उनके मददगारों को बख्शा नहीं जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि हमले के पीछे जो भी लोग हैं, उन्हें कठोरतम सज़ा दी जाएगी और भारत आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेगा।
सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति को पेश की गई रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि यह हमला पूरी तरह से सीमा पार से संचालित था और इसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में चुनावों के सफल आयोजन तथा वहां हो रही आर्थिक प्रगति को बाधित करना था। एजेंसियों ने इस बात के भी पुख्ता संकेत दिए हैं कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों ने इस हमले की साजिश रची और उसके लिए लॉजिस्टिक सहायता भी प्रदान की।
भारत सरकार ने हमले के बाद कड़ा रुख अपनाते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। सबसे बड़ा कदम था सिंधु जल संधि को स्थगित करना, जो भारत और पाकिस्तान के बीच जल वितरण का एक महत्वपूर्ण समझौता रहा है। इसके अतिरिक्त सरकार ने पाकिस्तान पर आर्थिक, राजनयिक और सामरिक दबाव बढ़ाने के लिए कई पाबंदियां भी लागू की हैं।
पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने के लिए सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सक्रियता बढ़ाई है। विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त को तलब कर औपचारिक विरोध जताया और संयुक्त राष्ट्र सहित अन्य वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन देने के सबूत साझा करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
इस बीच, विपक्षी दलों ने भी पहलगाम हमले को लेकर सरकार के साथ खड़े होने का संकेत दिया है। सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में अधिकांश राजनीतिक दलों ने सरकार की ओर से आतंकियों के खिलाफ की जाने वाली किसी भी सख्त कार्रवाई को समर्थन देने का भरोसा जताया। यह राष्ट्रीय एकजुटता उस समय की आवश्यकता है जब भारत को न केवल आतंरिक बल्कि बाहरी खतरों से भी निपटना है।
सुरक्षा एजेंसियों को मिली स्वतंत्रता भी इस बार असाधारण रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सशस्त्र बल अपने जवाबी कार्रवाई की रणनीति, लक्ष्य और समय सीमा खुद तय करें। इसका अर्थ यह है कि अब सैन्य कार्रवाइयों में पहले की तरह राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा और सेना को खुली छूट दी गई है।
इसके अलावा यह भी स्पष्ट संकेत हैं कि भारत अब अपने प्रतिरक्षा ढांचे को और आधुनिक बनाने की दिशा में गंभीर है। इग्ला-एस मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति और उसके बाद 90 अतिरिक्त मिसाइलों और 48 लॉन्चर्स की खरीद का निर्णय इसी व्यापक रणनीति का हिस्सा है, जिससे सीमावर्ती इलाकों में भारत की वायु सुरक्षा और मजबूत होगी।
वर्तमान परिस्थिति में जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव फिर से बढ़ रहा है, सरकार की सख्त रणनीति और सैन्य तैयारियों से स्पष्ट हो गया है कि भारत अब ‘मौन’ नीति नहीं बल्कि ‘प्रभावी जवाब’ की नीति पर आगे बढ़ रहा है। यह नीति सिर्फ सुरक्षा तक सीमित नहीं बल्कि कूटनीतिक, आर्थिक और सामरिक स्तरों पर भी लागू हो रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान को कई और मोर्चों पर भारत के कड़े रुख का सामना करना पड़ सकता है। भारत की यह रणनीति न केवल वर्तमान संकट का समाधान करने में सहायक होगी, बल्कि यह आतंक के खिलाफ भविष्य में भी एक मजबूत निवारक के रूप में कार्य करेगी।