लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर जाति, धर्म और वर्ग के मुद्दे पर सियासी संग्राम छिड़ गया है। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव राम गोपाल यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर सीधा हमला बोला है। उनका आरोप है कि मुख्यमंत्री ने उनका पूरा बयान सुने बिना ही सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दे दी, जबकि उनका वक्तव्य उत्तर भारत के कुछ राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश में, जाति और धर्म के आधार पर हो रहे अत्याचारों को लेकर था।
क्या कहा रामगोपाल यादव ने?
रामगोपाल यादव ने हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में भाषण देते हुए कहा था कि उत्तर भारत के कुछ राज्यों में, विशेषकर उत्तर प्रदेश में, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि लोगों के खिलाफ फर्जी मुकदमे सिर्फ उनकी जाति या धर्म देखकर दर्ज किए जा रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा, “जाति और धर्म के आधार पर न केवल मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं, बल्कि एनकाउंटर किए जा रहे हैं, संपत्ति जब्त की जा रही है और गैंगस्टर एक्ट जैसे कड़े कानून लगाए जा रहे हैं। यह सिलसिला इतना भयावह हो गया है कि महिलाओं पर भी अत्याचार जाति और वर्ग देखकर किए जा रहे हैं।”
रामगोपाल यादव ने विशेष तौर पर एक घटना का जिक्र करते हुए कहा, “कर्नल सोफिया का धर्म उनके नाम से पहचान लिया गया और उन्हें गालियाँ दी गईं। यह दर्शाता है कि हमारे समाज में धर्म को लेकर कितनी संकीर्ण मानसिकता पनप चुकी है।”
सीएम योगी का त्वरित ट्वीट: बिना संदर्भ जाने प्रतिक्रिया?
इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि इस तरह के बयान समाज में विद्वेष फैलाते हैं और विपक्ष केवल नकारात्मकता फैलाने में लगा हुआ है।
हालांकि, रामगोपाल यादव का आरोप है कि मुख्यमंत्री ने उनका पूरा बयान सुने बिना ही प्रतिक्रिया दे दी। उन्होंने कहा, “मेरे बयान का एक अंश निकालकर उसे गलत संदर्भ में प्रस्तुत किया गया। मुख्यमंत्री को पहले पूरा बयान सुनना चाहिए था।”
राजनीति में जाति धर्म का प्रवेश: नई नहीं पुरानी बीमारी
भारत में जाति और धर्म का राजनीति में इस्तेमाल कोई नया विषय नहीं है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में तो यह लंबे समय से चुनावी समीकरणों का आधार रहा है। चाहे वह दलित वोट बैंक हो, पिछड़ा वर्ग या मुस्लिम समुदाय – हर वर्ग की राजनीतिक भागीदारी और उससे जुड़ी रणनीति वर्षों से बहस का विषय रही है।
रामगोपाल यादव के बयान ने इसी बहस को एक बार फिर हवा दी है। उन्होंने सिर्फ प्रशासनिक अन्याय की बात नहीं की, बल्कि इसे “विकृत मानसिकता” से जोड़कर एक गहरी सामाजिक चिंता जाहिर की है।
कई उदाहरण, एक पैटर्न?
रामगोपाल यादव ने दावा किया कि उत्तर प्रदेश में अधिकारियों की पोस्टिंग भी अब जाति और धर्म देखकर की जा रही है। हालांकि, प्रशासनिक स्तर पर इस आरोप को अब तक किसी दस्तावेजी प्रमाण से नहीं जोड़ा गया है, लेकिन यह सच है कि पिछली कुछ घटनाओं ने इस दिशा में चिंताएं जरूर पैदा की हैं।
उदाहरण के लिए:
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कुछ जिलों में एक ही जाति विशेष के अधिकारियों की तैनाती को लेकर सवाल उठे हैं।
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एनकाउंटर की घटनाओं में कुछ खास समुदायों की अत्यधिक संख्या को लेकर मानवाधिकार संगठनों ने समय-समय पर रिपोर्ट्स जारी की हैं।
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संपत्ति जब्ती की कार्रवाइयों में भी पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया गया है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: समर्थन और विरोध दोनों मुखर
रामगोपाल यादव के बयान के बाद सपा नेताओं ने उनके समर्थन में खड़े होते हुए सरकार पर निशाना साधा। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए कहा कि “जब तक प्रशासन में जातिवाद रहेगा, न्याय की उम्मीद एक सपना ही रहेगा।”
दूसरी ओर, बीजेपी नेताओं ने रामगोपाल यादव के बयान को “सस्ती राजनीति” करार दिया। बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, “सपा नेता जानबूझकर जाति और धर्म के नाम पर समाज को बांटने का प्रयास कर रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी की सरकार में कानून का राज है और अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होती है, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो।”
सोशल मीडिया की भूमिका: त्वरित प्रतिक्रिया, गहन विश्लेषण की कमी
इस पूरे घटनाक्रम में सोशल मीडिया की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। राजनीतिक नेता अक्सर एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर बिना पूरी जानकारी के बयानबाजी कर बैठते हैं, जिससे अफवाहें और गलतफहमियां फैलती हैं।
रामगोपाल यादव ने इसी पर चिंता जताई और कहा कि “मुख्यमंत्री जैसे जिम्मेदार व्यक्ति को बिना पूरे बयान को समझे कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी।”
मूल मुद्दा: क्या सचमुच हो रहा है जाति-धर्म आधारित अत्याचार?
यह सवाल सबसे अहम है। यदि हम आंकड़ों पर नजर डालें तो:
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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
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अल्पसंख्यकों के खिलाफ फर्जी एनकाउंटर और गिरफ्तारी जैसे मामलों में मानवाधिकार आयोग ने भी कई बार चिंता जताई है।
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संपत्ति जब्ती और गैंगस्टर एक्ट के दुरुपयोग की बात विपक्षी पार्टियों और नागरिक संगठनों द्वारा बार-बार उठाई जाती रही है।
हालांकि, सरकार का कहना है कि वह “जीरो टॉलरेंस” की नीति पर काम कर रही है और जो भी अपराध करेगा, चाहे वह किसी भी वर्ग का हो, उसे सजा जरूर मिलेगी।
समाजशास्त्रियों की राय: समस्या की जड़ मानसिकता में है
कई समाजशास्त्रियों का मानना है कि भारत में जातिवाद और धार्मिक भेदभाव केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं है, यह सामाजिक संरचना में गहराई से मौजूद है। जब तक प्रशासनिक सुधार, शिक्षा और संवैधानिक मूल्यों की मजबूत स्थापना नहीं होती, तब तक केवल बयानबाजी से स्थिति नहीं सुधरेगी।
प्रोफेसर राजीव शरण, जो लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र पढ़ाते हैं, कहते हैं:
“राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप मढ़ते रहते हैं, लेकिन कभी इस बात पर गंभीर चिंतन नहीं करते कि समाज में समानता कैसे लाई जाए। जाति और धर्म के नाम पर अत्याचार तभी रुकेगा जब संस्थागत बदलाव लाया जाए।”