‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर बेनकाब करने की कोशिशों के तहत एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल विदेश दौरे पर गया है, जिसका नेतृत्व कर रहे हैं वरिष्ठ कांग्रेस नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद डॉ. शशि थरूर। हालांकि, इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने को लेकर उन्हें अपनी ही पार्टी के कुछ सहयोगी सांसदों की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन थरूर ने इन आलोचनाओं का करारा जवाब देते हुए कहा है कि एक संपन्न लोकतंत्र में आलोचनाएं स्वाभाविक हैं, मगर इस वक्त उनका पूरा ध्यान अपने मिशन पर है।

कांग्रेस के भीतर ही उठे विरोध के सुर

थरूर पर सवाल उठाने वालों में कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता और सांसद शामिल हैं, जिन्होंने यह सवाल खड़ा किया कि ऐसे समय में जब केंद्र सरकार के कई फैसलों पर पार्टी कड़ा विरोध कर रही है, तब किसी वरिष्ठ नेता को भाजपा सरकार के नेतृत्व में किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल होना क्या उचित है। उनके अनुसार, यह कांग्रेस की मूल विचारधारा और सरकार विरोधी रुख के खिलाफ है।

हालांकि, शशि थरूर का रुख इससे बिल्कुल अलग है। उन्होंने कहा कि जब राष्ट्रीय हित की बात आती है, तो पार्टी की राजनीति को दरकिनार करना ही सही होता है। उनका कहना है कि वह भारत के हित में काम कर रहे हैं, न कि किसी राजनीतिक दल की तरफदारी कर रहे हैं।

ब्राजील से दिया जवाब

शशि थरूर फिलहाल उस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करते हुए ब्राजील में हैं, जो पाकिस्तान द्वारा फैलाए जा रहे झूठे प्रचार और भारत विरोधी बयानबाजी का अंतरराष्ट्रीय मंच पर जवाब देने गया है। वहीं से उन्होंने कांग्रेस नेताओं की आलोचना पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने स्पष्ट कहा,

“मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम अपने मिशन पर ध्यान केंद्रित करें। निस्संदेह एक संपन्न लोकतंत्र में टिप्पणियां और आलोचनाएं होना लाजिमी है, लेकिन इस वक्त हम उन पर ध्यान नहीं दे सकते।”

थरूर ने आगे कहा कि जब वे भारत लौटेंगे, तब उनके पास अपने सहयोगियों, आलोचकों और मीडिया से बातचीत करने का पूरा अवसर होगा। लेकिन अभी उनका लक्ष्य उन देशों में भारत का पक्ष मजबूती से रखना है, जहां वह दौरे पर हैं।

मिशन: ऑपरेशन सिंदूर

इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का उद्देश्य है पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ फैलाए जा रहे झूठे प्रोपेगैंडा का मुंहतोड़ जवाब देना और यह बताना कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए भारत ने आतंकवाद के खिलाफ किस तरह कड़ा रुख अपनाया है। भारत ने हाल ही में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सफल सैन्य कार्रवाई की है, जिसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर सही संदर्भ में प्रस्तुत करना बेहद जरूरी माना जा रहा है।

इस प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस, भाजपा, टीएमसी, डीएमके, एनसीपी समेत कई दलों के प्रतिनिधि शामिल हैं, जो संयुक्त रूप से भारत के पक्ष को दुनिया के सामने रख रहे हैं। शशि थरूर को उनके अनुभव, विदेश नीति में गहरी समझ और संयमित दृष्टिकोण के कारण इस प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई सौंपी गई है।

पार्टी लाइन से ऊपर उठकर काम

शशि थरूर ने हमेशा से ही अपनी सोच को पार्टी लाइन से ऊपर रखा है, खासकर जब मामला देशहित से जुड़ा हो। उन्होंने कहा कि वे एक भारतीय सांसद हैं, और जब भारत की साख को लेकर कोई बात होती है, तो उन्हें पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

थरूर ने कहा,

“हम एक ऐसे मंच पर हैं जहां भारत की छवि, प्रतिष्ठा और नीति की रक्षा करनी है। यह वक्त राजनीति करने का नहीं है, बल्कि एकजुट होकर काम करने का है। जो लोग आलोचना कर रहे हैं, वे इस पहल के महत्व को नहीं समझ रहे हैं।”

शशि थरूर का विदेश मामलों का लंबा अनुभव रहा है। वे संयुक्त राष्ट्र में अंडर सेक्रेटरी जनरल जैसे पद पर रह चुके हैं और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के गहरे जानकार माने जाते हैं। भारतीय संसद में भी वे विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष रहे हैं और अक्सर विदेश नीति पर उनके विचारों को काफी गंभीरता से लिया जाता है।

ऐसे में सरकार ने जब यह फैसला लिया कि इस मिशन को बहुदलीय स्वरूप दिया जाए, तो थरूर का नाम स्वाभाविक रूप से सामने आया। उनकी नेतृत्व क्षमता, संवाद शैली और प्रभावशाली भाषणों ने उन्हें इस मिशन के लिए सबसे उपयुक्त बना दिया।

हालांकि, कांग्रेस आलाकमान ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन पार्टी के भीतर असंतोष की आवाजें जरूर उठी हैं। कुछ नेता इसे पार्टी की “सॉफ्ट लाइन” की निशानी बता रहे हैं, तो कुछ इसे थरूर की “व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा” के रूप में देख रहे हैं।

इससे पहले भी थरूर पार्टी लाइन से अलग राय रखने के लिए जाने जाते रहे हैं। चाहे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की तारीफ हो या संसद में किसी बिल को लेकर अलग दृष्टिकोण – थरूर का रुख अक्सर कांग्रेस के परंपरागत दृष्टिकोण से हटकर रहा है।

थरूर का कूटनीतिक जवाब

हालांकि, शशि थरूर ने इन बातों का जवाब बेहद कूटनीतिक अंदाज़ में दिया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में भिन्न मत होना आम बात है और उन्होंने अपने सहयोगियों की राय का सम्मान किया। लेकिन उन्होंने दोहराया कि राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय छवि के मसले पर उन्हें किसी भी सियासी मतभेद से ऊपर उठकर सोचना होगा।

उनके अनुसार, “जब हम किसी विदेशी मंच पर भारत की बात कर रहे होते हैं, तो हम केवल कांग्रेस, भाजपा या किसी अन्य पार्टी के प्रतिनिधि नहीं होते – हम भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। और मुझे गर्व है कि मुझे यह अवसर मिला।”

मीडिया और जनता की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर शशि थरूर के इस बयान की काफी चर्चा हो रही है। कई लोगों ने उनके स्टैंड की सराहना की है और उन्हें एक सच्चे राजनयिक और देशभक्त बताया है। वहीं कुछ लोग सवाल भी उठा रहे हैं कि क्या यह प्रतिनिधिमंडल वास्तव में पाकिस्तान के प्रोपेगैंडा को रोकने में सफल होगा।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शशि थरूर इस समय एक कठिन संतुलन साधने की कोशिश कर रहे हैं – एक ओर पार्टी के भीतर असहमति है, तो दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा बनाए रखने का दबाव।

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