Hizbul Mujahideen: आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का सक्रिय सदस्य बरीHizbul Mujahideen: आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का सक्रिय सदस्य बरी

Hizbul Mujahideen: आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का सक्रिय सदस्य बरी

साक्ष्य यानि एविडेंस कितने जरूरी है वो मैं बताती हूं अगर आपके पास एविडेंस है तो बेकसूर सजा से बच सकता है और अगर एविडेंस है तो आरोपी को उसके हिसाब से सजा मिल सकती है। और वही अगर सबूत के अभाव में बेकसूर को सजा मिल जाए और आरोपी आराम से बच कर फरार हो जाएं जी हां सबूत इतने ही जरूरी है हमारी न्यायिक व्यवस्था सबूतों के ईर्द गिर्द ही घूमती है। एक ऐसा ही मामला बता देती नामी आतंकी सबूतों के अभाव में छूट चुका है और अब वो खुले आम अपनी अपराध की दुनिया को अंजाम दे सकता है।

घटना सहारनपुर की बताई जा रही है जहां सहारनपुर के देवबंद कस्बे में वर्ष 1993 में हुए आतंकी बम धमाके के मुख्य आरोपी नजीर अहमद वानी को कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। ACJM परविंदर सिंह की कोर्ट ने 31 साल पुराने इस मामले में सुनवाई के बाद नजीर को बरी कर दिया।

मामला था 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद 1993 में देवबंद के स्टेट हाईवे पर स्थित यूनियन तिराहे पर धमाका हुआ था। उस समय वहां ड्यूटी पर तैनात यूपी पुलिस के 2 कांस्टेबल घायल हो गए थे।

इसके अलावा स्थानीय निवासी भी गंभीर रूप से घायल हुए थे। पुलिस ने कश्मीर के बडगाम जिला निवासी नजीर अहमद वानी उर्फ मुस्तफा को आरोपी बताते हुए मुकदमा दर्ज कर अरेस्ट कर जेल भेज दिया था।

देवबंद पुलिस ने इस धमाके को आतंकी हमला मानते हुए वर्ष 1994 में जम्मू-कश्मीर के बड़गाम जिले निवासी नजीर अहमद वानी को आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का सक्रिय सदस्य बताते हुए अरेस्ट किया था। गिरफ्तारी के कुछ समय बाद ही उसे जमानत मिल गई थी, जिसके बाद वह फरार हो गया और अपना नाम-पता बदलकर कश्मीर के अलग-अलग स्थानों पर रहने लगा।

2024 में जब नजीर लगातार कोर्ट में पेश नहीं हुआ तो कोर्ट ने उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए। इसके बाद उसे जम्मू-कश्मीर से दोबारा गिरफ्तार कर लिया। उस समय उस पर 25 हजार रुपए का इनाम भी घोषित था। जनवरी 2025 में उसे फिर से जमानत मिल गई, लेकिन मुकदमे की कार्यवाही जारी रही।

51 वर्षीय नजीर अहमद वानी ने वर्ष 2024 में जम्मू-कश्मीर की बड़गाम विधानसभा सीट से तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उसे हार का सामना करना पड़ा। करीब तीन दशक बाद कोर्ट ने इस चर्चित मामले में फैसला सुनाते हुए नजीर अहमद वानी को सबूतों के अभाव में दोषमुक्त कर दिया। अभियोजन पक्ष ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रहा, जिसके चलते अदालत ने आरोपी को क्लीन चिट दे दी।

कोर्ट ने आदेशों में कहा-केवल दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त पर दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता। जब तक दस्तावेजी साक्ष्य के समर्थन में कोई मौखिक या प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य प्रस्तुत न किए जाए।

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