नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच अचानक घोषित किए गए सीजफायर पर अब सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। मंगलवार को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) मुख्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार से कई सवाल खड़े करते हुए सीजफायर की पारदर्शिता पर गंभीर आशंका जताई।
गहलोत का सीधा सवाल – ट्रंप साहब ठेकेदार कैसे बन गए?
गहलोत ने पत्रकारों से बातचीत में सबसे पहले यह सवाल उठाया कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भारत-पाक मसले में ठेकेदारी का अधिकार किसने दिया? उन्होंने कहा, “कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है, फिर किसी तीसरे देश को इसमें दखल देने की इजाज़त कैसे दी जा सकती है?” उन्होंने ट्रंप की भूमिका को संदेहास्पद बताया और इसे भारत की संप्रभुता पर सीधा प्रहार करार दिया।
प्रधानमंत्री के संबोधन पर उठाए सवाल
गहलोत ने दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में जनता को निराश किया। उन्होंने सीजफायर पर स्पष्टता देने की बजाय, सिर्फ सामान्य बातें कीं और असली मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया। गहलोत ने कहा, “जब भारतीय सेना आतंकवाद के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई कर रही थी, तब अचानक सीजफायर क्यों किया गया? क्या यह अमेरिका के दबाव का नतीजा है?”
मोदी सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव में काम करने का आरोप
पूर्व मुख्यमंत्री ने सवाल किया कि क्या भारत सरकार किसी अंतरराष्ट्रीय दबाव में काम कर रही है? उन्होंने यह जानना चाहा कि आखिर किन परिस्थितियों में भारतीय सेना की आक्रामक रणनीति को अचानक रोक दिया गया। उन्होंने कहा, “देश को यह जानने का अधिकार है कि आखिर किसके दबाव में इतना बड़ा कदम उठाया गया?”
सीजफायर के बाद भी सीमा पर फायरिंग क्यों?
गहलोत ने कहा कि अगर वाकई सीजफायर लागू किया गया है, तो फिर श्रीगंगानगर और जैसलमेर में फायरिंग और मिसाइल का मलबा कैसे मिला? उन्होंने इसे विसंगति करार देते हुए सरकार से इस पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की।
‘सेना ने पराक्रम दिखाया, लेकिन फैसला अमेरिका का?’
गहलोत ने भारतीय सेना की सराहना करते हुए कहा कि हमारे जवानों ने सीमाओं पर बहादुरी दिखाई, लेकिन अफसोस इस बात का है कि फैसले कहीं और से लिए जा रहे हैं। उन्होंने पूछा, “क्या अब भारत की विदेश और रक्षा नीति भी अमेरिका के अनुसार तय हो रही है?”
इंदिरा गांधी के दौर से तुलना
गहलोत ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व का उदाहरण देते हुए कहा कि 1971 के युद्ध के समय अमेरिका ने जब भारत पर दबाव डाला था, तब इंदिरा गांधी ने स्पष्ट किया था कि भारत अपनी संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगा। परिणामस्वरूप पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया। उन्होंने कहा कि आज की सरकार उस साहसिक नेतृत्व को दोहराने में असफल साबित हो रही है।
प्रधानमंत्री की चुप्पी को बताया भरोसे का संकट
गहलोत ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता को भरोसे में लेने में असफल रहे हैं। उन्होंने कहा, “देश भर में एकजुटता का माहौल था, विपक्ष भी सरकार के साथ खड़ा था। लेकिन अब अगर सरकार चुप्पी साधे रही तो यह विश्वास टूटेगा।”
सीजफायर से पहले ट्रंप का बयान – मोदी को देना था जवाब
गहलोत ने सवाल उठाया कि जब ट्रंप का बयान पहले आ चुका था, तो प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में उसका ज़िक्र क्यों नहीं किया? उन्होंने कहा कि मोदी को स्पष्ट करना चाहिए था कि भारत किसी विदेशी दबाव में काम नहीं कर रहा।
डीजीएमओ कॉल पर्याप्त नहीं
केंद्र सरकार द्वारा सीजफायर की घोषणा को भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस) के बीच हुई बातचीत से जोड़ने पर गहलोत ने कहा कि इतने बड़े फैसले सिर्फ एक कॉल से नहीं लिए जा सकते। उन्होंने सरकार से पूरी सच्चाई सामने रखने की मांग की।
राहुल गांधी की मांग – बुलाया जाए संसद का विशेष सत्र
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस पूरे मुद्दे को लेकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। कांग्रेस का कहना है कि मौजूदा हालात में देश की जनता के सामने पारदर्शी और तथ्यात्मक जानकारी रखना ज़रूरी है।
गहलोत ने की राष्ट्रहित में पारदर्शिता की अपील
अंत में गहलोत ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि देशहित में जनता को सही जानकारी दी जाए। उन्होंने कहा, “सेना ने अपना काम किया है, अब सरकार की बारी है कि वह जिम्मेदारी से अपना पक्ष रखे और जनता के सवालों का जवाब दे।”
कांग्रेस के इस तीखे रुख से यह साफ है कि भारत-पाक सीजफायर का मुद्दा अब सिर्फ कूटनीतिक नहीं, बल्कि राजनीतिक बहस का भी केंद्र बन चुका है।
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