बेंगलुरु के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुई भगदड़ की दर्दनाक घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हादसे में अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 30 से अधिक लोग घायल बताए जा रहे हैं। सभी मृतकों की उम्र 40 वर्ष से कम थी, जिनमें एक 13 वर्षीय बच्चा भी शामिल था। मरने वालों में तीन की उम्र 20 साल से कम और छह की उम्र 20 से 30 वर्ष के बीच बताई गई है।
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार जब मीडिया से बात करने सामने आए तो घटना को याद करते हुए भावुक हो गए। उन्होंने बताया कि एक मां ने उनसे अपने बेटे का शव पोस्टमॉर्टम कराए बिना सौंपने की गुज़ारिश की, लेकिन कानूनी प्रक्रियाओं के चलते यह संभव नहीं हो सका। नम आंखों और रुंधे गले से उन्होंने कहा, “इस हादसे में बच्चों की भी जान गई है। इस नुकसान की भरपाई किसी भी कीमत पर नहीं की जा सकती।”
शिवकुमार ने यह भी कहा कि यह जरूरी नहीं है कि जीत के जश्न की अनुमति किसने दी थी, क्योंकि जिम्मेदारी तय की जाएगी और जांच पूरी होने के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार इस दुखद घटना पर राजनीति नहीं करना चाहती। उन्होंने अपनी ओर से माफी मांगते हुए कहा कि 35,000 लोगों की क्षमता वाला स्टेडियम इतने बड़े जनसमूह को संभाल नहीं सका। वहीं, कर्नाटक के गृह मंत्री जी. परमेश्वर के अनुसार, कार्यक्रम स्थल पर अनुमान से कहीं अधिक यानी लगभग आठ लाख लोग एकत्रित हो गए थे।
घटना के तुरंत बाद राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को ₹10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी इस मामले में मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे दिए हैं और 15 दिन में रिपोर्ट मांगी गई है। उन्होंने कहा, “हम इस घटना का बचाव नहीं करना चाहते। हमारी सरकार इस पर राजनीति नहीं करेगी। भीड़ ने स्टेडियम के गेट भी तोड़ दिए थे, जिससे भगदड़ मची। किसी को भी इतनी भीड़ की उम्मीद नहीं थी।”
इस बीच भाजपा ने कर्नाटक सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि सरकार ने भीड़ के अनुमान में भारी चूक की। भाजपा नेताओं का कहना है कि आरसीबी की जीत की संभावनाओं को देखते हुए पहले ही शहर में उत्सव जैसा माहौल बन गया था, लेकिन प्रशासन ने सुरक्षा और भीड़ नियंत्रण के पुख्ता इंतजाम नहीं किए। केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे ने तो डीके शिवकुमार से इस्तीफे की मांग तक कर डाली और कहा कि इस मामले की जांच उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में होनी चाहिए।
इस घटना ने न सिर्फ राज्य सरकार की तैयारियों पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी दिखाया है कि जब भीड़ नियंत्रण के बगैर बड़े आयोजन किए जाते हैं, तो उसके क्या भीषण परिणाम हो सकते हैं। एक तरफ जहां परिजन अपने खोए हुए अपनों का शोक मना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक लापरवाही के आरोपों से सरकार की साख भी दांव पर लगी है। अब देखना यह होगा कि मजिस्ट्रेट जांच क्या निष्कर्ष निकालती है और क्या दोषियों पर वाकई कोई सख्त कार्रवाई होती है।