“अच्छे विचार और ग्रन्थ, हमारे अन्तस को प्रकाशित करते हैं।”
यह वाक्य मात्र एक विचार नहीं, बल्कि एक संपूर्ण दर्शन है, जिसे जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर और विश्वविख्यात संत पूज्यपाद श्री स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज बार-बार अपने प्रवचनों में दोहराते हैं। उनका यह संदेश उस गूढ़ सत्य की ओर इशारा करता है, जो मानव जीवन को अंधकार से उजाले की ओर ले जाता है।
आध्यात्मिक ज्ञान का स्रोत – विचार और ग्रंथ
स्वामी अवधेशानन्द जी का मानना है कि संसार में दो चीज़ें ही ऐसी हैं जो मानव जीवन को दिशा देती हैं – एक विचार और दूसरा ज्ञान का ग्रंथ। विचार वो बीज है, जिससे व्यवहार की फसल उगती है, और ग्रंथ वो भूमि है, जिसमें उस बीज को पनपने का पोषण मिलता है। भारतीय संस्कृति में भगवद्गीता, उपनिषद, रामायण, महाभारत जैसे महान ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक बल्कि सामाजिक और नैतिक दिशा भी देते हैं।
स्वामी जी का स्पष्ट मत है कि जैसे शरीर को भोजन चाहिए, वैसे ही आत्मा को शुद्ध विचारों की आवश्यकता होती है। यदि आत्मा की भूख को नज़रअंदाज़ किया गया, तो व्यक्ति भटकाव और भ्रम का शिकार हो जाता है।
क्यों जरूरी हैं ‘अच्छे विचार’?
पूज्य श्री कहते हैं, “एक विचार एक व्यक्ति को बंधन से मुक्ति दिला सकता है, वहीं गलत विचार पूरे समाज को विनाश की ओर ले जा सकते हैं।” आज के समय में जहां सोशल मीडिया, नकारात्मकता और भौतिक आकर्षण से व्यक्ति भ्रमित होता जा रहा है, वहां अच्छे विचार मन को स्थिरता, स्पष्टता और विवेक प्रदान करते हैं।
वे यह भी बताते हैं कि विचारों की शक्ति ही मनुष्य को देवता या दानव बनाती है। रावण और राम दोनों ने शिक्षा पाई थी, लेकिन सोच की दिशा अलग थी – परिणाम भी अलग हुए।
ग्रंथ: शाश्वत ज्ञान के स्रोत
स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी ने अपने प्रवचनों में बार-बार भारतीय ग्रंथों के महत्व को उजागर किया है। वे कहते हैं कि ग्रंथ केवल कथा नहीं, आत्मिक ऊर्जा के स्रोत हैं। जैसे दीपक अंधकार में रास्ता दिखाता है, वैसे ही ग्रंथ जीवन के भटकाव में हमें सही दिशा दिखाते हैं। रामचरितमानस हो या श्रीमद्भागवत, ये ग्रंथ केवल धार्मिक पुस्तके नहीं, बल्कि मानव मन की गहराईयों को छूने वाली चिरंतन शिक्षाएं हैं।
वे गीता को “विवेक का विज्ञान” कहते हैं, जो न केवल युद्धभूमि में अर्जुन को दिशा देता है, बल्कि जीवन के हर द्वंद्व में व्यक्ति को समाधान देता है।
पूज्य प्रभुश्री की शैली – सरल, प्रभावशाली और अंतर्मुखी
स्वामी अवधेशानन्द जी के प्रवचन में एक विशेषता होती है – सरलता और गहराई का अद्भुत मेल। वे जटिल आध्यात्मिक विषयों को इतनी सहजता से समझाते हैं कि आम जन भी उन्हें आत्मसात कर पाता है। उनके वाक्य केवल श्रोताओं के कानों तक नहीं जाते, बल्कि हृदय में उतरते हैं।
“हम ग्रंथों को पढ़ते हैं, लेकिन कभी ये विचार करें कि ग्रंथ भी हमें पढ़ते हैं” – यह विचार उन्होंने एक व्याख्यान में साझा किया था। उनका आशय था कि जब हम ग्रंथों के साथ श्रद्धा और एकाग्रता से जुड़ते हैं, तब वे हमारी कमजोरियों, प्रवृत्तियों और विचारों को उजागर करके हमें सुधारने लगते हैं।
युवाओं के लिए मार्गदर्शन
आज का युवा तेजी से बदलते युग में मानसिक दबाव, आत्म-संशय और पहचान के संकट से गुजर रहा है। स्वामी अवधेशानन्द जी का मानना है कि यदि इस पीढ़ी को धार्मिक ग्रंथों और सकारात्मक विचारों से जोड़ा जाए, तो यह देश को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकती है। उनका संदेश है – “शक्ति का उपयोग तब सार्थक है जब वह विवेक से संचालित हो।”
वे युवाओं को केवल भक्ति नहीं, जिम्मेदार चेतना की ओर प्रेरित करते हैं। उनकी दृष्टि में अध्यात्म कोई पलायन नहीं, बल्कि एक उच्चतर जीवन की साधना है।
वर्तमान युग में ग्रंथों का पुनर्पाठ
स्वामी जी बार-बार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ग्रंथों को केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित न करें, बल्कि उन्हें दैनिक जीवन का अंग बनाएं। वे उदाहरण देते हैं कि जैसे एक डॉक्टर रोज़ नई मेडिकल जानकारी पढ़ता है, वैसे ही एक साधक को भी नियमित रूप से गीता, उपनिषद या योगवशिष्ठ जैसे ग्रंथों को पढ़ते रहना चाहिए। क्योंकि यह मन का उपचार है – मानसिक रोगों का इलाज।
अंतर्मन की यात्रा – अच्छे विचारों के साथ
स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज का यह कथन – “अच्छे विचार और ग्रंथ, हमारे अन्तस को प्रकाशित करते हैं”, केवल एक धार्मिक सन्देश नहीं, बल्कि व्यावहारिक और वैज्ञानिक रूप से सिद्ध सत्य है। आज के तनावपूर्ण, भ्रमित और भौतिकतावादी युग में यह आवश्यक हो गया है कि हम स्वयं को आत्मिक ऊर्जा से भरें। और इसका सबसे सरल उपाय है – अच्छे विचारों का संग और श्रेष्ठ ग्रंथों का अध्ययन।