नई दिल्ली – जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद देश में सुरक्षा की चिंता गहराई है। ऐसे समय में भारतीय सेना को एक बड़ी सामरिक बढ़त हासिल हुई है। रूस से प्राप्त इग्ला-एस (Igla-S) मिसाइलों की पहली खेप भारतीय सेना को सौंप दी गई है। साथ ही, रक्षा मंत्रालय ने 90 अतिरिक्त मिसाइलें और 48 लॉन्चर खरीदने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। यह कदम भारत की सीमाओं पर वायु सुरक्षा को और मजबूत करेगा, खासतौर पर पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों से उत्पन्न खतरों के मद्देनज़र।

क्या है इग्ला-एस मिसाइल?

इग्ला-एस एक VSHORADS (Very Short Range Air Defence System) है, जो रूसी मूल की पोर्टेबल एयर डिफेंस मिसाइल प्रणाली है। इसे कंधे पर रखकर फायर किया जा सकता है और यह कम ऊँचाई पर उड़ते दुश्मन के विमानों, हेलीकॉप्टरों और ड्रोन को मार गिराने में सक्षम है।

इस मिसाइल की मारक दूरी लगभग 6 किलोमीटर और ऊँचाई की सीमा 3.5 किलोमीटर तक होती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह “फायर एंड फॉरगेट” तकनीक पर आधारित है, जिसमें लक्ष्य को भांपने और उसके पीछे लॉक हो जाने के बाद सैनिक को केवल ट्रिगर दबाना होता है। शेष काम मिसाइल खुद करती है।

सेना को पहले बैच में मिली इग्ला-एस मिसाइलें

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, पहली खेप में इग्ला-एस मिसाइलों की आपूर्ति कुछ सप्ताह पहले हुई है। यह मिसाइलें सीमा पर तैनात वायु रक्षा यूनिट्स को सौंपी जा चुकी हैं, ताकि वे दुश्मन के ड्रोन, हेलीकॉप्टर और फाइटर जेट्स से पैदा होने वाले खतरों का तुरंत जवाब दे सकें। यह प्रणाली विशेष रूप से पहाड़ी और सीमावर्ती इलाकों के लिए बेहद कारगर मानी जा रही है, जहां पारंपरिक वायु रक्षा प्रणालियां हमेशा प्रभावी नहीं होतीं।

क्यों जरूरी है VSHORADS?

भारतीय सेना लंबे समय से Very Short Range Air Defence Systems को अपग्रेड करने की आवश्यकता महसूस कर रही थी। वर्तमान में सेना के पास मौजूद कई पोर्टेबल वायु रक्षा प्रणालियां पुरानी हो चुकी हैं। खासकर पाकिस्तान और चीन की तरफ से तेजी से विकसित हो रहे ड्रोन और एयरक्राफ्ट खतरों को देखते हुए आधुनिक सिस्टम की आवश्यकता अत्यंत जरूरी हो गई थी।

पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान और चीन की सेनाएं ड्रोन तकनीक और लो-फ्लाइंग विमानों में उल्लेखनीय प्रगति कर चुकी हैं। इसका सीधा असर भारत की सीमाओं पर देखा गया है, जहां घुसपैठ और ड्रोन निगरानी की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं।

पहलगाम हमला और बदलती सैन्य रणनीति

हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने सुरक्षा एजेंसियों को एक बार फिर सतर्क कर दिया है। इस हमले के बाद, भारत की ओर से जवाबी रणनीति को न केवल जमीनी बल्कि हवाई क्षेत्र में भी मज़बूत किया जा रहा है। इग्ला-एस मिसाइलों की तैनाती इसी रणनीति का हिस्सा है, ताकि सीमावर्ती क्षेत्रों में एयर डिफेंस को और अधिक सशक्त बनाया जा सके।

रूस से हो रहा है सौदा

भारत ने रूस से 2021 में इग्ला-एस प्रणाली की खरीद के लिए बातचीत शुरू की थी। यह सौदा भारत-रूस रक्षा साझेदारी के तहत किया गया है। Make in India पहल के तहत इन मिसाइलों का आंशिक निर्माण भारत में भी किया जाएगा, जिससे देश की रक्षा उत्पादन क्षमता को भी बल मिलेगा।

भारतीय रक्षा मंत्रालय ने अब 90 और इग्ला-एस मिसाइलों और 48 लॉन्चर की खरीद के लिए निविदा (Tender) जारी की है। यह प्रक्रिया निकट भविष्य में पूरी होने की उम्मीद है, जिसके बाद इन मिसाइलों को देशभर की विभिन्न रणनीतिक यूनिट्स को सौंपा जाएगा।

आधुनिक युद्ध में इग्ला-एस की भूमिका

आज के युद्ध का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। पारंपरिक युद्ध की तुलना में अब हाइब्रिड और लो-इंटेंसिटी कॉन्फ्लिक्ट ज्यादा देखने को मिलते हैं। ऐसे में वायु सुरक्षा प्रणालियों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है। ड्रोन, छोटे हेलीकॉप्टर और कम ऊँचाई पर उड़ते विमानों के खिलाफ प्रतिक्रिया का समय बहुत सीमित होता है। ऐसे में इग्ला-एस जैसी प्रणाली सेना को रियल-टाइम में प्रतिक्रिया देने की क्षमता प्रदान करती है।

तकनीकी विशेषताएं

विशेषता विवरण
मूल देश रूस
मारक दूरी 6 किलोमीटर तक
ऊंचाई सीमा 3.5 किलोमीटर
लॉन्च प्रकार कंधे पर रखकर फायर करने योग्य
लक्ष्य फाइटर जेट्स, हेलीकॉप्टर, ड्रोन
तकनीक इन्फ्रारेड होमिंग, फायर एंड फॉरगेट

भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञों की राय

सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि इग्ला-एस जैसी प्रणाली की तैनाती भारत की हवाई रक्षा रणनीति में अहम बदलाव लाएगी। पूर्व वायुसेना अधिकारी एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) वीके शर्मा ने कहा, “यह मिसाइल प्रणाली सैनिकों को फ्रंटलाइन पर दुश्मन के हवाई हमलों से तुरंत बचाव करने की शक्ति देती है। पाकिस्तान और चीन जैसे देशों से निपटने में यह प्रणाली बहुत प्रभावी होगी।”

सामरिक बढ़त और मनोवैज्ञानिक प्रभाव

इग्ला-एस की तैनाती से न केवल भारतीय सेना को सामरिक बढ़त मिलेगी बल्कि इससे दुश्मनों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ेगा। जब उन्हें यह पता होगा कि भारतीय सैनिक अब अत्याधुनिक एयर डिफेंस मिसाइलों से लैस हैं, तो वे बार-बार एयर स्पेस में घुसपैठ करने से पहले कई बार सोचेंगे।

भविष्य की योजनाएं

रक्षा मंत्रालय की योजना है कि आने वाले वर्षों में इस श्रेणी की मिसाइलों का स्वदेशी निर्माण तेज किया जाए। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित VSHORADS सिस्टम का परीक्षण पहले ही सफल रहा है। भविष्य में इग्ला-एस जैसी प्रणाली को भारत में तैयार करने की दिशा में यह एक अहम कदम होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *