हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने अपने कुछ अधिकारियों, खासतौर पर प्रशासकीय सचिवों से नाराज नजर आ रहे हैं। नाराजगी की वजह ये है कि कैबिनेट की बैठक के लिए जरूरी दस्तावेज यानी मेमोरेंडम (Memorandum) समय पर नहीं भेजे जा रहे हैं। मुख्यमंत्री को शिकायत मिली है कि ज्यादातर सचिव बैठक के ठीक पहले, यानी आखिरी वक्त पर मेमोरेंडम भेजते हैं और फिर उन्हें एजेंडे में शामिल करने की मांग करते हैं। इससे न केवल कैबिनेट ब्रांच को मुश्किल होती है, बल्कि मंत्रियों को भी दस्तावेजों को ठीक से पढ़ने का वक्त नहीं मिल पाता।
सीएम सैनी के सचिवों को निर्देश
दरअसल हरियाणा में जब भी मंत्रियों की बैठक होती है, उसमें कई फैसले लिए जाते हैं। इन फैसलों के लिए अलग-अलग विभागों से जुड़े दस्तावेज पहले से तैयार करके कैबिनेट ब्रांच को भेजे जाते हैं। लेकिन अब ये बात सामने आई है कि कई बार ये दस्तावेज बहुत देर से भेजे जाते हैं। मुख्यमंत्री ने इसे गंभीरता से लिया और अफसरों को फटकार लगाई। इसके बाद कैबिनेट ब्रांच की ओर से एक आधिकारिक लेटर जारी किया गया है, जिसमें प्रशासकीय सचिवों को सख्त निर्देश दिए गए हैं।
72 घंटे पहले देना होगा मेमोरेंडम (Memorandum)
इस पत्र में साफ कहा गया है कि यह देखने में आता है कि प्रशासकीय सचिवों द्वारा अपने विभाग से संबंधित मेमोरेंडम समय रहते कैबिनेट ब्रांच को नहीं भिजवाए जाते हैं, लेकिन कैबिनेट से पहले लास्ट डे उन्हें एजेंडा में शामिल करवाने का अनुरोध किया जाता है। समय के अभाव के कारण मंत्रिपरिषद के सदस्यों को ऐसे मेमोरेंडम को पढ़ने का समय नहीं मिल पाता है। इस बारे में कार्यालय की ओर से कैबिनेट के सामने मेमोरेंडम प्रस्तुत करने के लिए समय-समय पर हिदायतें जारी की गई हैं, जिनके अनुसार मंत्रिपरिषद की बैठक से 72 घंटे यानी 3 दिन पहले मेमोरेंडम, कैबिनेट ब्रांच में मिल जाना चाहिए, इसके साथ ही ये मेमोरेंडम 2 दिन पहले मंत्रिपरिषद के मेंबरों, सचिव, राज्यपाल को भिजवाए जाएं।
72 घंटे के बाद मेमोरेंडम स्वीकार नहीं होगा
लेटर में प्रशासनिक सचिवों को हिदायत दी गई है कि भविष्य में मंत्रिपरिषद की बैठक से 72 घंटे यानी 3 दिन पहले ज्ञापन मंत्रीमण्डल शाखा में भिजवाना जरूरी होगा। 72 घंटे के बाद ज्ञापन को मंत्रिपरिषद की बैठक के लिए स्वीकार नहीं किया जाएगा।
क्यों है यह जरूरी?
मंत्रिपरिषद की बैठकें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। इसमें राज्य के लिए नीतियां बनाई जाती हैं, बजट पास होते हैं और कई बड़े फैसले लिए जाते हैं। ऐसे में अगर दस्तावेज समय पर न मिलें, तो न तो मंत्री उन्हें ठीक से समझ पाते हैं और न ही सही फैसले लिए जा सकते हैं। मुख्यमंत्री की इस सख्ती से अब उम्मीद की जा रही है कि प्रशासकीय सचिव समय की पाबंदी रखेंगे और काम में अनुशासन लाएंगे। इससे सरकार की कार्यशैली और फैसले दोनों बेहतर होंगे।