बिहार

बिहार की राजनीति एक बार फिर जातीय समीकरणों के पाले में लौटती नजर आ रही है, और इस बार सियासी दलों की निगाहें राजपूत समुदाय के वोट बैंक पर टिकी हैं। राज्य में अक्टूबर 2025 में संभावित विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी, आरजेडी और जेडीयू सभी पार्टियां राजपूतों को साधने की कवायद में जुट गई हैं।

सियासी गणित में राजपूतों की अहमियत

बिहार में करीब 10% सवर्ण मतदाता हैं, जिनमें राजपूतों की संख्या लगभग 3.45% है। ये आंकड़ा भले ही छोटा दिखे, लेकिन राज्य की 30 से 35 विधानसभा सीटों और 7 से 8 लोकसभा सीटों पर राजपूत वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि हर दल इस प्रभावशाली जाति को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है।

बीजेपी के साथ मजबूत पकड़

राज्य विधानसभा में फिलहाल 28 राजपूत विधायक हैं, जिनमें से 17 अकेले बीजेपी से हैं। साल 2020 में एनडीए ने 29 राजपूत उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिनमें से 19 जीतकर विधानसभा पहुंचे। इससे साफ है कि बीजेपी के साथ राजपूतों का जुड़ाव गहरा रहा है। हाल ही में पटना में वीर कुंवर सिंह की पुण्यतिथि पर हुए कार्यक्रम में राजपूत नेताओं की भारी मौजूदगी और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी का भाषण बीजेपी के वोट बैंक को मजबूत करता दिखा।

तेजस्वी यादव की कोशिशें

तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन, खासकर आरजेडी, अब राजपूतों को साधने के लिए आक्रामक रणनीति अपना रहा है। तेजस्वी ने वीर कुंवर सिंह की मूर्ति स्थापित करने का वादा कर सीधे समुदाय को संदेश दिया है। उन्होंने मंच से कहा, “हमें राजपूतों पर भरोसा है। अगर वादा पूरा न करें तो सत्ता से बाहर कर दीजिए।” साथ ही, आरजेडी में जगदानंद सिंह जैसे वरिष्ठ राजपूत नेताओं की मौजूदगी को तेजस्वी ने अपनी सियासी पूंजी बताया।

जेडीयू का ‘समावेशिता’ कार्ड

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू भी पीछे नहीं है। पटना में आयोजित महाराणा प्रताप जयंती कार्यक्रम में नीतीश कुमार की शिरकत और राजपूत प्रतीकों के सहारे समावेशिता का संदेश देने की कोशिश की गई। एमएलसी संजय सिंह जैसे नेता इसे समुदाय के साथ जुड़ने का अवसर बता रहे हैं।

इतिहास से मिलती प्रेरणा

बिहार की राजनीति में राजपूतों की भूमिका ऐतिहासिक रही है। अनुग्रह नारायण सिन्हा, हरिहर सिंह, चंद्रशेखर सिंह और सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे नेताओं ने राज्य की सत्ता को प्रभावित किया है। हालांकि बीते कुछ दशकों में ये पकड़ कमजोर पड़ी, लेकिन अब एक बार फिर राजनीतिक दल इस ताकत को पहचानते हुए रणनीति बना रहे हैं।

2025 की रणनीति में राजपूत निर्णायक

2020 के मुकाबले 2025 में मुकाबला और दिलचस्प होने वाला है। महागठबंधन को जहां प्रभावशाली राजपूत चेहरे की तलाश है, वहीं बीजेपी अपने मौजूदा आधार को बरकरार रखने की जुगत में है। खास बात यह है कि एनडीए सरकार में फिलहाल 4 राजपूत मंत्री हैं और लोकसभा में 6 सांसद राजपूत हैं।

2025 के चुनाव में राजपूत मतदाता किंगमेकर की भूमिका में नजर आ सकते हैं। सवाल यह है कि क्या बीजेपी अपना परंपरागत समर्थन बनाए रख पाएगी या आरजेडी और जेडीयू की कोशिशें इस समीकरण को बदल देंगी। एक बात तय है—बिहार की सियासी फिजा में राजपूत बिरादरी की अहमियत पहले से कहीं अधिक हो चुकी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *